मक्खन बाजी
हास्य व्यंग्य
मक्खनबाजी
“कहाँ जाने की तैयारी है ?” पतिदेव को तैयार होते देख श्रीमती जी ने पूछा।
“आफिस और कहाँ जानेमन, मियां की दौड़ मस्जिद तक की ही होती है। घर से ऑफिस और ऑफिस से सीधे आपकी दरबार में।” पति देव रोमांटिक मूड में बोले।
“अच्छा…, बातें तो ऐसे कर रहे हैं, जैसे कभी कहीं और जाते ही नहीं।” श्रीमती जी स्वाभाविक अंदाज में बोलीं।
“अजी, आपने हमें ऐसा छोड़ा ही कहाँ है कि कहीं और जा सकें। वैसे मोहतरमा आज ये पूछ क्यों रही हैं ? इरादा तो नेक है न ?” पतिदेव श्रीमती जी के करीब आते हुए बोले।
“इसलिए कि आज फिर से आपने पहन क्या लिया है, देखा है उसे ?” श्रीमती जी के स्वर में नाराजगी झलक रही थी।
“क्यों क्या बुरा है इसमें ?” पतिदेव बोले।
“हे भगवान, आप न… कितनी बार कहा है कि एक दिन फुरसत में अपने सालों पुराने कपड़े छाँटकर अलग कर दो, बाई को दे दूँगी, पर आप हैं कि बस… करेंगे कुछ नहीं और कभी भी कुछ भी उठाकर पहन लेंगे।” श्रीमती जी बोलीं।
“अरे भई, अच्छी खासी तो है ये ड्रेस। पेंट तो पिछले महीने ही तुमने खरीदी थी, हाँ शर्ट कुछ पुरानी जरूर है।” पतिदेव ने सफाई देते हुए कहा।
“कुछ… ? आपको पता भी है ये वही शर्ट है, जिसे पहनकर आप पंद्रह साल पहले मुझे देखने आए थे।” श्रीमती जी ने याद दिलाया।
“अरे हाँ, याद आया। बहुत कंफर्टेबल लगता है ये मुझे, बिल्कुल तुम्हारी तरह। जैसे पंद्रह साल पहले थी, आज भी वैसे ही, बल्कि उससे भी अच्छी। यही तो वह शर्ट थी जानेमन, जिसे पहनने से तुम और तुम्हारे घरवालों पर हमारा जादू चल गया था।” पतिदेव बातों में मक्खन लगाते हुए बोले।
“बस, बस, ज्यादा फेंकने की जरूरत नहीं।” श्रीमती जी श्रीमान जी को वास्तविक धरातल पर लाने की कोशिश करते हुए बोलीं।
“वैसे हमारी च्वाइस हमेशा बहुत ही लाजवाब होने के साथ-साथ टिकाऊ भी होती है। आजकल के थ्री जी, फोर जी, फाइव जी जैसी नहीं, कैलेण्डर बदला नहीं कि बदल जाए। बल्कि ए जी, ओ जी वाली है। अब खुद को ही देख लो।” श्रीमान जी का मक्खन लगाना जारी था।
“हाँ जी…, वैसे इस मामले में मेरी भी च्वाइस आपसे कुछ अलग नहीं है जी।” श्रीमती जी भी पतिदेव की हाँ में हाँ मिलाने लगी थीं।
“सो तो होना ही है जी, आखिर मिंयाँ-बीबी हैं यार।” श्रीमान जी श्रीमती जी की आँखों में आँखें डालकर बोले।
“बातें बनाना तो कोई आपसे सीखे।” श्रीमती जी पीछा छुड़ाते हुए बोलीं।
“सो तो है जी। पंद्रह साल के साथ ने हमें इतना तो सिखा ही दिया है।” श्रीमान जी श्रीमती जी के और भी करीब आते हुए बोले।
“हाँ, इसका फायदा भी तो हमें ही मिलता है जी।’ श्रीमती जी रहस्यमयी अंदाज में फरमाया।
“फायदा, कैसा फायदा जानेमन ?” श्रीमान जी ने आश्चर्य से पूछा।
“मूड बन जाता है।” श्रीमती जी शरमाते हुए बोलीं।
“ओए-होए-होए, जानेमन, कहो तो आज की छुट्टी ले लूँ।” श्रीमान जी श्रीमती जी को बाँहों में भरते हुए बोले।
– डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा
रायगढ़, छत्तीसगढ़