मकर सक्रांति की पार्टी
मकर संक्रांति के पावन पर्व पर रात्रि के भोजन हेतु, कुछ मित्रों द्वारा आपसी सहयोग से बाटी-चोखे की पार्टी का आयोजन किया गया। आलू, बैंगन,टमाटर,आटा, चावल,दाल आदि सामग्रियों की व्यवस्था हुई और सभी भोजन बनाने तैयारियों में लग गए।
आग जलाने के लिए एक बड़ी सी कढ़ाई व गोबर के उपलों का भी प्रबन्धन किया गया जिसपर बाटी व चोखे की सब्जियों को पकाया जाना था। संगीत के लिए होमथिएटर का प्रबन्ध किया गया।पुराने गाने इस पार्टी को और मनोरंजक बना रहे थे। सभी अपना अपना काम करते हुए गानों को गुनगुना भी रहे थे। सभी शीघ्रता से काम को अंजाम देने में लगे थे ताकि जल्द से जल्द स्वादिष्ट भोजन तैयार हो और सभी अपनी अपनी जठराग्नि को शांत कर सकें।
शुरुआत हुई कढाई में आग जलाने से,शीघ्रता से आग पूरी तरह जलने लगी,उसकी आंच इतनी तीव्र थी कि कोई उसके पास जाने का साहस नही कर पा रहा था। तोड़ी देर बार हमारे मित्र मंडली के मुखिया जी जो कि स्वादिष्ट भोजन बनाने में प्रवीण थे, उस आग में आलू बैंगन भुनने लगे। उन्हें किसी और कि आवश्यकता थी जो उन सब्जियों को भुनने में उनकी सहायता कर सके ताकि आग का सदुपयोग किया जा सके और कार्य तीव्रता से पूरा हो जाय। तभी एक अन्य मित्र ने उनकी सहायता करनी शुरू की लेकिन आँच काफी तेज थी।
तो उसने मुखिया मित्र से कहा – भाई ! क्या ये सम्भव है कि आग भी जलती रहे,इसमे सारा काम भी होता रहे लेकिन आँच न लगे?
मुखिया मित्र ने कहा- भाई! ऐसा कैसे सम्भव है। आग जलेगी तो आँच लगेगी ही। यदि स्वादिष्ट भोजन का स्वाद चखना है तो आँच को भी बर्दाश्त करना होगा।
“मनुष्य भी ऐसे ही जीवन से सुखों की आकांक्षा करता है किंतु दुःख स्वीकारने को तैयार नही होता। हमे ये समझना चाहिए कि जीवन तो सुख-दुःख दोनो का मेल है- एक को भुलाकर दूसरे का रह पाना सम्भव नही है।”