*,मकर संक्रांति*
“मकर संक्रांति”
मकर संक्रांति के पावन शुभ बेला में ,गंगा स्नान कर पुण्य कमायें।
नव चेतना जागृत हो उमंगों, तरंगों के संग हर्षित हो पर्व मनाये।
धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश कर ,उत्तरायण की ओर हो जाये।
सूर्य देव की अर्ध्य दे आराधना कर,नवीन क्रांति सूरज सा जगमगाये।
सूर्य उदित हो उत्तरायण में तिल गुड़ खिचड़ी बांटकर दान पुण्य कमाये।
तिल गुड़ की भीनी सी सोंधी खुशबू लिए, लड्डू खिचड़ी मन को भाये।
पीली सरसों खेतों में लहराये ,बासंती बयार पीली चुनरिया ओढाये।
अरमानों के पतंग उड़ाने आसमान में,नैन में लगा डोर इधर उधर लहराते जाये।
जीवन की विस्मय धरा पर ,खुशियों की सौगात बटोरते चले जायें।
दुआओं में शामिल हो बेइंतहा प्रेम , प्रीत की रीत संग निभाते चले जाये।
सतरंगी पतंगों सी जिंदगी ना जाने कब ,जीवन की डोर कब कहाँ तक उड़ा ले जाये।
रात हो या तमाम उम्र एक न एक दिन यूँ ही खींच कर कटते चले जाये।
आनंद सुख शांति सदभावना जगा,पर्व में छोटी सी मुस्कुराहट दे जाये।
खट्टी मीठी यादों का सफर तय करते हुए, दिलों को जोड़ संगम करते जाये।
जीवन का यह पर्व निराला अदभुत ,प्रकृति फिजाओं के साथ निहारते चले जाये।
रिश्तों की मिठास तिल गुड़ जैसा ,जीवन भर बरकरार एक दूजे का ख्याल रखा जाये।
सदियों तक ये चलती रहे रीति रिवाज पुरानी, कोई इसे तोड़ न पाये।
आओ मकर संक्रांति का पर्व ,तिल गुड़ लड्डू खाकर खुशियाँ मनाये।
मीठी वाणी बोलें सदा सर्वदा, छल कपट छोड़कर परम्पराओं को निभाये।
मकर संक्रांति की हार्दिक शुभकामनाएं
शशिकला व्यास ✍