मकतब से
चलना यार अदब से
इज्जत पाओ सब से
आये हैं परदेशी
अपने देश अरब से
खुद आँखों से देखो,
सोचो मत मज़हब से
बात बनेगी ये तब,
मिलना हो साहब से
बचते रहते ऐसे
जैसे हों गायब से
हमदर्द नहीं कोई
जुड़ते सब मतलब से
खेल खिलाना छोडों,
जोडो़ तुम मकतब से
पाला सबको ही है
अपने निज करतब से
रोती रहती है वो
प्रिय छोड़ गया जब से
डा. सुनीता सिंह ‘सुधा’
2/6/2022
सिल के आये कपड़े
दिखते हैं बेढ़ब से
डा. सुनीता सिंह ‘सुधा’
वाराणसी
2/6/2022