मंहगाई की हालत क्या है पूछो बाजार से
दोस्तों,
एक ताजा ग़ज़ल आपकी मुहब्बतों के हवाले,,,!!!
ग़ज़ल
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मंहगाई की हालत क्या है पूछो बाजार से,
गुजर कैसे रही है ये पूछो ग़रीब लाचार से।
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फुटपाथों पे बसर रही जिंदगानियाँ पता है,
मगर सिर पे छत है पता चला अखबार से।
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हर गली, हर चौराह, खड़े मंदिर शिवालय,
मगर ताज्जुब,लोग करते नफ़रत मज़ार से।
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किस कदर शातिर है शैतान,यहाँ ये जाना,
बिन नश्तर कत्ल कर संग रहते ऐतबार से।
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अजीब सा मंजर है मुल्क में हाय रे तौबा,
मज़लूम ख़ामोश, रक्षक मिले गुनहगार से।
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तहरीक को आतुर रोज हमारी आवाम है,
चुप क्यूँ हो ‘जैदि’ सवाल करो सरकार से।
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मायने:-
बसर:-गुजार
मज़ार:-दरगाह, कब्र
नश्तर:-चाकू
मज़लूम:-अत्याचार से पीड़ित
तहरीक:- आंदोलन
आवाम:-आम लोग/ जनता
शायर:-“जैदि”
डॉ.एल.सी.जैदिया “जैदि”