*राधा-कृष्ण मंदिर, किला कैंप, रामपुर: जिसकी प्राचीन मूर्तियॉ
राधा-कृष्ण मंदिर, किला कैंप, रामपुर: जिसकी प्राचीन मूर्तियॉं पाकिस्तान से लाई हुई धरोहर हैं
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लेखक: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 9997615 451
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लेखन तिथि: 16 अप्रैल 2024 मंगलवार
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किला कैंप से अभिप्राय किले की दीवार से भीतर जाकर बनाई गई उस कॉलोनी से है, जिसमें 1947 के भारत विभाजन के पश्चात पाकिस्तान से आए हुए हिंदू शरणार्थियों को तत्कालीन नवाबी शासन द्वारा रहने की सुविधा प्रदान की गई थी। यहां जो लोग पाकिस्तान से आए, वह अपनी जमीन-जायदाद तथा आजीविका के सारे अवसरों को खोकर अपनी जान बचाकर भारत आए थे। विपरीत परिस्थितियों में कोई भी सामान साथ में लाना कठिन था। केवल प्राणों की रक्षा ही एकमात्र उद्देश्य था। जैसे-तैसे भारत में आकर शरण लेने के पश्चात यह लोग कुरुक्षेत्र से होते हुए रामपुर आए।
सिर छुपाने की जगह जब किला कैंप में मिली, तो अपना सामान खोलकर जिस बहुमूल्य वस्तु को इन लोगों ने पूरी सजधज के साथ अपने प्रेरणा स्रोत के रूप में किला कैंप में स्थापित किया; वह राधा कृष्ण की प्राचीन मूर्तियां थीं । किला कैंप में राधा कृष्ण मंदिर का निर्माण करके राधा कृष्ण की भक्ति की अविराम धारा इन लोगों ने प्रवाहित की।
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बड़ा राधा कृष्ण मंदिर, किला कैंप
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किला कैंप के प्रवेश द्वार से जब हम भीतर प्रवेश करते हैं तो बाहर किले की ऊंची दीवारें दवा बन जाती हैं जब स्वाधीनता के प्रभात में राधा कृष्ण की विशाल मूर्तियॉं मंदिर का निर्माण करके पुनर्स्थापित हुई थीं। पुनर्स्थापना शब्द का प्रयोग इसलिए आवश्यक है, क्योंकि यह मूर्तियां अभिभाजित भारत के पाकिस्तान क्षेत्र में पूजी जाती रही थीं।
पाकिस्तान के जिला मियां वाली, तहसील बख्तर में पंडित विद्याधर जी सरपंच थे । राधा कृष्ण के उपासक थे। मूर्तियां उनके द्वारा पूजी जाती थीं । जब पाकिस्तान से भाग कर रामपुर आए तो उनके सामान में सबसे बहुमूल्य सामग्री राधा कृष्ण की मूर्तियॉं ही थीं ।कृष्ण जी की मूर्ति गहरे काले पत्थर की है। उतना ही गहरा काला पत्थर जो अयोध्या में रामलला की मूर्ति का है। कृष्ण जी के हाथों में बांसुरी सुशोभित है। कृष्ण जी के बॉंई ओर राधा जी की श्वेत मूर्ति शोभायमान है।
पंडित विद्याधर जी के पुत्र पंडित नरेंद्र नाथ तथा पौत्र दिनेश कुमार शर्मा मंदिर में मंजीरे बजाते हुए भजन करने में तल्लीन हैं। एक महिला सुंदर कंठ से भजन गा रही थीं । उनका साथ कुछ अन्य महिलाएं दे रही थीं । बैठने की अच्छी व्यवस्था थी। जमीन पर भी बिछाई थी। कुछ कुर्सियां थीं। मंदिर परिसर साफ सुथरा था। पंडित विद्याधर जी का ब्लैक एंड व्हाइट फोटो दीवार पर थोड़ी ऊंचाई पर लगा हुआ था। विभिन्न देवी देवताओं की आरतियॉं दीवार पर अंकित थीं ।
पंडित विद्याधर जी के पुत्र पंडित नरेंद्र नाथ जी से जब हमने पूछा कि राधा कृष्ण की यह मूर्तियां कितनी पुरानी रही होगी ? तब उन्होंने बताया कि भारत विभाजन के समय उनके पिताजी इन मूर्तियों को सुरक्षित ढंग से पाकिस्तान से भारत लेकर आए थे। पाकिस्तान में यह मूर्तियां कितने समय से पूजा के काम में लाई जा रही थीं, इसका ठीक ठीक अनुमान नहीं लगाया जा सकता। इस बारे में कभी कोई चर्चा भी नहीं हुई। पंडित नरेंद्र नाथ जी और उनके पुत्र दिनेश कुमार शर्मा जी से बातचीत करने पर इतना तो स्पष्ट हो ही गया कि कम से कम एक शताब्दी पुरानी तो यह मूर्तियां निश्चय ही हैं । इससे अधिक प्राचीन इतिहास तो संभवतः पंडित विद्याधर जी ही बता सकते थे। अब वह इस संसार में नहीं हैं । पूर्वजों की धार्मिक धरोहर को पाकिस्तान से लेकर भारत के रियासत जिले रामपुर में सहेज कर रखने के लिए हमने पंडित विद्याधर जी की पावन स्मृतियों को प्रणाम किया।
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छोटा राधा कृष्ण मंदिर, किला कैंप
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पंडित विद्याधर जी द्वारा स्थापित राधा कृष्ण मंदिर किला कैंप का अकेला मंदिर नहीं है। एक और राधा कृष्ण मंदिर भी किला कैंप के भीतर गली में मुड़कर हमारे देखने में आया। इसमें भी राधा कृष्ण जी की मूर्ति स्थापित है।
यहां पर पंडित प्रेम शर्मा जी से भेंट हुई। आप मंदिर की देखभाल करते हैं। मंदिर के भीतर स्वच्छता देखते ही बनती है। आपसे बातचीत करने पर पता चला कि आपके ताऊजी पंडित गुलीचंद जी राधा कृष्ण की इन मूर्तियों को भारत विभाजन के समय पाकिस्तान से भाग कर आते समय अपने साथ लाए थे। कुरुक्षेत्र से होते हुए रामपुर में किला कैंप में आपको शरण मिली। रियासती शासन था। उचित स्थान महसूस करके पंडित गुली चंद जी यहीं पर बस गए। राधा कृष्ण मंदिर का निर्माण किया। 1991 में पंडित गुली चंद जी की मृत्यु हुई ।आप पाकिस्तान के बन्नू शहर में निवास करते थे।
राधा कृष्ण की मूर्ति आकार में काफी छोटी है, लेकिन श्रृंगार में कोई कमी नहीं है। कृष्ण जी की मूर्ति के दोनों हाथों में मुरली सुशोभित है। राधा और कृष्ण दोनों के गले में मोतियों की सुंदर मालाएं हैं। गुलाबी वस्त्रों का श्रृंगार नयनाभिराम है। कृष्ण जी के सिर पर मुकुट है। मोर पंख भी है। मंदिर में देवी जी की विशाल मूर्ति है। हनुमान जी की भी बड़ी प्रतिमा है।
मंदिर परिसर में ही स्वामी श्री लाल जी महाराज का चित्र लगा हुआ है। पंडित प्रेम शर्मा जी ने बताया कि उनके परिवार में परंपरा से स्वामी श्री लाल जी महाराज के प्रति आस्था का भाव विद्यमान रहा है। सिंध प्रांत में स्वामी श्री लाल जी महाराज की काफी मान्यता है। इस परंपरा का निर्वहन किला कैंप में आपके चित्र की उपस्थिति के द्वारा प्रमाणित हो रहा है।
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शिव मंदिर, किला कैंप
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एक मंदिर किला कैंप में प्रवेश करते ही बिल्कुल ठीक सामने है। यहॉं शिवलिंग स्थापित है। इस मंदिर की संरचना नवीन है। दीवारों पर देवी देवताओं की मूर्तियां हैं। इस शिव मंदिर में शिवलिंग के पास ही नंदी की सुंदर अलंकृत मूर्ति स्थापित है। दीवारों पर गणेश जी तथा दुर्गा जी की मूर्तियां हैं। एक पोस्टर भी है, जिस पर रामचरितमानस से उद्धृत चौपाइयां लिखी हुई हैं।मंदिर परिसर साफ-सुथरा और भव्य है।
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दुर्गा मंदिर, किला कैंप
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इसी तरह एक मंदिर किला कैंप के भीतर जाकर और है। यहां पर भी देवी देवताओं के चित्र सुशोभित हैं। एक चित्र में सिंह पर सवार दुर्गा जी का सौम्य रूप जहां विराजमान है, तो वहीं दूसरे चित्र में देवी दुर्गा महाकाली के रूप में देखी जा सकती हैं। उनके गले में मंडों की माला सुशोभित है। यह चित्र राक्षसी शक्तियों पर विजय प्राप्त करने की घोषणा कर रहा है।
मंदिर के द्वार पर खुला हुआ ताला लटका था। पूछने पर पता चला कि बंदर खुले दरवाजे से अंदर आ जाते हैं , जिससे बचने के लिए यह व्यवस्था की गई है। अन्यथा मंदिर के द्वार खुले रहते हैं।
किला कैंप और उसके मंदिर आजादी के बाद की संरचना हैं । यह इस बात के द्योतक हैं कि व्यक्ति कितनी भी विपरीत परिस्थितियों में क्यों न चला जाए, यहां तक कि उसे जान बचाने के लिए भी क्यों न भागना पड़े; लेकिन वह अपने साथ अपने आराध्य देव को हृदय में बसा कर अवश्य चलता है । पाकिस्तान से भाग कर आए शरणार्थियों ने किला कैंप को न केवल एक सुंदर कॉलोनी में बदल दिया, बल्कि यहां पाकिस्तान से लाई गई राधा कृष्ण की सुंदर और प्राचीन मूर्तियों को मंदिर बनाकर उसमें स्थापित करके अपनी प्रबल आस्था को उच्च स्वर प्रदान किया है।