— मंदिर में ड्रेस कोड़ —
कभी कभी इंसान की गलतिओं को देखकर ही ऐसे कदम उठाने पर विवश होती हैं मंदिर की समिति , आप मंदिर जा रहे है, अच्छी बात है, आप मंदिर में बेहूदा कपड़े पहन कर जा रहे हैं, यह कहाँ तक उचित है ? मंदिर में भगवान् के दर्शन करने जा रहे हो, या उन मूर्तिओं के जिन को अकल नहीं कि कैसे कपडे पहन कर मंदिर में जाना चाहिए , आप अमीर हैं, अपने लिए हैं, पर भगवान की नजर में आप फ़कीर ही रहोगे, आपको चाहे विरासत में पैसा मिला या आपने खुद से कमाया, परन्तु उस पैसे के साथ न्याय तो कीजिये , ऐसा गन्दा परिधान किस लिए पहन कर देवी देवताओं के दर्शन करने जाते हो, कि लोग जो दर्शन करने आये हैं, उनके मन पर आपके पहरावे का बुरा प्रभाव पड़े, फिर बातें यह सुनाने को मिलेंगे, की सब की नजर ही गलत है, अरे आप गलत नहीं हो क्या, छोटे कपडे, कटे फटे कपडे, जिस्म को झांकते हुए लिबास , क्या दर्शाना चाहते हो, किस को अपनी तरफ आकर्षित करने के ऐसे कपडे पहनते हो, तन ढको ऐसा की लोग भगवान् की तरफ ध्यान करते हुए दर्शन करने जाए, न कि आपकी तरफ देखने को मजबूर हो जाए, अच्छा ही हो रहा है, कि आज मंदिर की समितियां भी जागरूक हो गयी है, नहीं तो आजकल के जवान लड़के लड़किओं ने जैसे कपडे पहन कर मंदिर में आना जाना शुरू किया , उस को देखकर तो लगता ही नहीं , कि यह लोग मंदिर जा रहे है, ऐसा लगता है, जैसे बाजार या पिकनिक मनाने जा रहे है, अब एक बात और सामने आती है, वो यह है, कि उनके माँ बाप भी ऐसे कपड़ों पर ध्यान नहीं देते, वो साथ में जाते है, शायद इस में अपनी शान समझते है, कि हमारे बच्चे ने सब से अलग, बहुत बढ़ीया कपडे पहने हुए है,उनको भी ऐसी छोटी छोटी चीजों पर ध्यान देने की जरुरत है, बात कड़ी लिखी गयी है, पर समझने के लायक ही लिखी गयी है, अक्सर कड़वा लिखने वाले को लोग अलग दृष्टि से देखते है, वो समाज में उनकी आँखों में सुधारक न बनकर , आँख का काँटा जरूर बन जाता है, पर सत्य तो सत्य ही रहेगा, अच्छे और समझदार लोग महसूस कर सकते है, और आगे भी किसी ने किसी से कह सकते है, कि हम सब को मर्यादा का पालन अवश्य करना है, सब को प्रेरित भी करना हम सब का कर्तव्य है !
अजीत कुमार तलवार
मेरठ