मंदिर मस्जिद रोते हैं ✍️ by Aamir Singarya
मंदिर मस्जिद रोते है*
जब मजहब को लेकर,
हिन्दू मुस्लिम दंगे होते हैं।
कहीं सिसकर बड़ी घुटन से,
मंदिर मस्जिद रोते हैं।
कौन धर्म कहता है मंदिर,
मस्जिद को तुड़वाना है।
राजनीति की साजिश सारी,
मजहब एक बहाना है।
हर दंगे के पीछे सांसद,
और विधायक होते हैं।
कहीं सिसकर बड़ी घुटन से,
मंदिर मस्जिद रोते हैं।
गीत एकता के लिखकर,
में कवि का धर्म निभाता हूँ।
नहीं लेखनी से अपनी,
कोई दंगा भड़काता हूँ।
अटल ह्रदय में रखता हूँ,
अब्दुल को शीश झुकाता हूँ।
लेकिन कुछ गद्दार दिलों में,
बीज द्वेष के बोते हैं।
कहीं सिसकर बड़ी घुटन से,
मंदिर मस्जिद रोते हैं।
धर्मों की हिंसा से हत्या,
हर दिन कोई होती है।
आंसू गिरते हैं कुरान के,
रामायण भी रोती है ।
संसद में धर्मों के नारे,
वोट की खातिर होते हैं।
कहीं सिसकर बड़ी घुटन से,
मंदिर मस्जिद रोते हैं।
Aamir Singarya Freelance Writer