Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
26 Mar 2022 · 1 min read

मंदिर मस्जिद रोते हैं ✍️ by Aamir Singarya

मंदिर मस्जिद रोते है*

जब मजहब को लेकर,
हिन्दू मुस्लिम दंगे होते हैं।
कहीं सिसकर बड़ी घुटन से,
मंदिर मस्जिद रोते हैं।

कौन धर्म कहता है मंदिर,
मस्जिद को तुड़वाना है।
राजनीति की साजिश सारी,
मजहब एक बहाना है।
हर दंगे के पीछे सांसद,
और विधायक होते हैं।
कहीं सिसकर बड़ी घुटन से,
मंदिर मस्जिद रोते हैं।

गीत एकता के लिखकर,
में कवि का धर्म निभाता हूँ।
नहीं लेखनी से अपनी,
कोई दंगा भड़काता हूँ।
अटल ह्रदय में रखता हूँ,
अब्दुल को शीश झुकाता हूँ।
लेकिन कुछ गद्दार दिलों में,
बीज द्वेष के बोते हैं।
कहीं सिसकर बड़ी घुटन से,
मंदिर मस्जिद रोते हैं।

धर्मों की हिंसा से हत्या,
हर दिन कोई होती है।
आंसू गिरते हैं कुरान के,
रामायण भी रोती है ।
संसद में धर्मों के नारे,
वोट की खातिर होते हैं।
कहीं सिसकर बड़ी घुटन से,
मंदिर मस्जिद रोते हैं।
Aamir Singarya Freelance Writer

Language: Hindi
Tag: लेख
2 Likes · 2 Comments · 249 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Loading...