मंदिरों की पवित्रता
मंदिरों की पवित्रता
एक वक्त था जब मंदिर थे,आरती संग मंत्र की ध्वनि,
हर हाथ जुड़ते थे, माथे झुकते,भावनाओं की होती थी जड़ता।।
आस्था की वो धारा बहती,प्रभु के दरबार में सजीवता,
हर मन में थी ऊर्जा अपार,शांति मिलती, शुद्धता का आभार।।
आज वो दिन कहां खो गए,मंदिरों में अब वो सुकून कहां,
कैमरे, मोबाइल्स, रिकॉर्डिंग की भीड़,मंत्र और ध्यान का अस्तित्व नहीं।।
हर कदम पर सेल्फी की चाह,व्लॉगिंग, रील्स की बनती फौज,
आस्था का वो सागर सूख गया,तमाशा बन गया ये धार्मिक स्थल।।
जहां थी प्रार्थना की गूंज,अब वहां कीर्तन कम, शोर ज्यादा,
मन की शांति, ऊर्जा का क्षय,ध्यान की जगह दिखावटी उत्साह।।
मंदिर आस्था का प्रतीक है,उसे मत बनाओ पब्लिसिटी का जरिया,
इस पवित्रता को कायम रखो,वरना खो देंगे ये ऊर्जा का स्रोत।।
भगवान को तुम्हारी जरूरत नहीं,ना ही तुम्हारे दिखावे का भव्यता,
उनकी कृपा में जो शांति है,वो बस ध्यान और मनन में बसी है।।
अगर तुमने खो दिया ये ध्यान,भगवान का प्रकोप कहां रुकेगा,
इंसान का वजूद ही मिट जाएगा,फिर कहोगे ये भगवान की सजा है।।
मंदिरों को फिर से वही बनाओ,जहां शांति, ध्यान, और भक्ति है,
पवित्रता को उसमें सजीव रहने दो,आस्था के मंदिर को तमाशा मत बनाओ।