मंथन
जीवन के पल कुछ ऐसे होते हैं ,
जब मन उद्विग्न होता है।
बहुत प्रयास करने पर भी जी नहीं बहलता है।
अपनों का व्यवहार भी परायों सा प्रतीत होता है।
कुछ कार्य करने की इच्छा नहीं होती है।
यथार्थ को झुठलाने के प्रयास चारों तरफ से
होतें है ।
सत्य को प्रकट करना भी अपराधबोधग्रस्त करता सा
प्रतीत होता है।
लोगों में निहित स्वार्थ के समक्ष दूसरों के हितों की चिंता लेशमात्र भी नहीं होती है।
उन्हें येन केन प्रकारेण अपनी स्वार्थ सिद्धि ही
सर्वोपरि होती है।
वाक्- पटुता , छद्मव्यवहार एवं कुतर्क का सहारा लेकर
समूह मानसिकता का निर्माण किया जाता है।
जिससे सत्याधार को बहुमत के अभाव में शक्तिविहीन बनाया जा सके , और निहित स्वार्थों की पूर्ति की जा सके।
किसी व्यक्ति विशेष के विरुद्ध कूटनीति एवं षड्यंत्र के चक्रव्यूह से उसके चारित्रिक हनन् का प्रयास किया जाता है।
सद्भावना एवं संवेदनशीलता का नाटक करके लोगों को प्रभावित करने का प्रयास किया जाता है।
समाज में एक वर्ग विशेष का वर्चस्व होता है, एवं अन्य वर्गों को हीन दृष्टि से देखा जाकर ; उन्हें उनके मौलिक अधिकारों वंचित रखकर उनका शोषण किया जाता है।
नीति निर्देशों एवं कानून की संरचना इस प्रकार की जाती है ; कि इसका पालन करने के लिए किसी वर्ग विशेष को बाध्य किया जा सके , एवं वरीयता प्राप्त विशेष वर्ग इनसे निरापद रहकर अपना सामाजिक एवं राजनीतिक वर्चस्व कायम रख सकें।
तथा मानवता एवं मानवीय अधिकारों का राग अलाप कर आम जनता को भ्रमित किया जा सके।
एवं धर्म एवं जाति के आधार पर राजनीति करके अपने कुत्सित मंतव्यों की सफलता सुनिश्चित की जा सके।
ऐसे विभिन्न परिदृश्यों एवं परिस्थितियों का निर्माण किया जाता है, जिनसे आम आदमी का ध्यान ज्वलंत मुद्दों से भटकाकर उसे दिग्भ्रमित किया जा सके और वह उनमें उलझ कर रह जाए ,
एवं इस प्रकार ज्वलंत मुद्दे पार्श्व में ढकेले जा सकें।
कभी-कभी यह प्रश्न उठता है कि क्या हम जीवन की सार्थकता को भूलकर निरर्थक दिशाहीन जीवन भोगने के लिए बाध्य हो चुके हैं ?
जिसमें व्याप्त विसंगतियों को दूर करने के स्थान पर उन्हें स्वीकार करना क्या हमारी नियति बन चुकी है ?
तथाकथित मानव व्यवहार कहीं उसे अधोगति की
ओर अग्रसर कर उसके अवसान का कारण तो
नहीं बन रहा है ?
यदि नहीं , तो इस अंधकारमय त्रासदी के क्षितिज से प्रज्ञान का सूर्य कब उदय होगा ?
जो अपने आलोक से इस त्रासदी के अंधकार को समाप्त कर एक नए युग की संरचना करेगा।