मंत्र की ताकत
एक व्यापारी बड़ा धार्मिक था। व्यापारी धन संपदा से संपन्न भी था। एक बार उसने अपने घर पर पूजा रखी और पूरे शहर को न्यौता दिया।
पूजा पाठ के लिए अयोध्या से एक विद्वान शास्त्री जी को बुलाया गया और खान पान की व्यवस्था के लिए शुद्ध घी के भोजन की व्यवस्था की गई।
शुद्ध देसी घी के व्यंजन बनाने के लिये एक महिला जो पास के गांव में रहती थी उसको पूरी जिम्मेदारी सुपुर्द कर दी गई।
शास्त्री जी कथा आरंभ करते हैं , गायत्री मंत्र का जाप करते हैं और उसकी महिमा बताते हैं। उसके बाद हवन पाठ इत्यादि होता है।
पूजा में भाग लेने के लिये हजारों की संख्या में लोग आने लगे। और पूजा के बाद सभी लोगों को शुद्ध घी का भोजन कराया जाता था। ये सिलसिला रोज़ चलता था।
भोज्य प्रसाद बनाने वाली महिला बड़ी कुशल थी। वो अपना काम करके बीच – बीच में कथा भी सुन लिया करती थी।
रोज की तरह आज भी शास्त्री जी ने गायत्री मंत्र का जाप किया और उसकी महिमा का बखान करते हुए बोले कि..
इस महामंत्र को यदि पूरे मन से एकाग्रचित होकर किया जाये तो यह मंत्र आपको भव सागर से पार भी ले जा सकता है ! इस मंत्र के प्रभाव से इंसान जन्म मरण के झंझटों से मुक्त हो सकता है।
कार्यक्रम करते – करते कथा का अंतिम दिन आ गया। वह महिला उस दिन समय से पहले आ गई और शास्त्री जी के पास पहुंची। महिला ने शास्त्री जी को प्रणाम किया और बोली कि शास्त्री जी आपसे एक निवेदन है ।”
शास्त्री जी उसे पहचानते थे। उन्होंने उसे चौके में खाना बनाते हुये देखा था। वो बोले कहो क्या कहना चाहती हो ।”
वो थोड़ा सकुचाते हुये बोली – शास्त्री जी मैं एक गरीब महिला हूँ और पड़ोस के गांव में रहती हूँ। मेरी इच्छा है कि आज का भोजन आप मेरी झोपड़ी में करें ।”
व्यापारी भी वहीं था। वो थोड़ा क्रोधित हुआ, बोलने को हुआ लेकिन तभी शास्त्री जी ने बीच में उन्हें रोकते हुये उसका निमंत्रण स्वीकार कर लिया और बोले आप तो अन्नपूर्णा हैं। आपने इतने दिनों तक हम सभी को स्वादिष्ट भोजन करवाया। मैं आपका आमंत्रण स्वीकार करता हूं। मैं आपके साथ कथा के बाद चलूंगा।”
वो महिला प्रसन्न हो गई और काम में व्यस्त हो गई।
कथा खत्म हुई और वो शास्त्री जी के समक्ष पहुंच गई। वायदे के अनुसार शास्त्री जी उस महिला के साथ चल पड़े। जब शास्त्री जी गांव की सीमा पर पहुंचे तो देखा कि सामने नदी है।
शास्त्री जी ठिठककर रुक गये। बारिश का मौसम होने के कारण नदी उफान पर थी। कहीं कोई नाव भी नहीं दिख रही थी ।
शास्त्री जी को रुकता देख महिला ने अपने वस्त्रों को ठीक से अपने शरीर पर लपेट लिया। इससे पहले कि शास्त्री जी कुछ समझ पाते , उसने शास्त्री जी का हाथ थामकर नदी में छलांग लगा दी।
और जोर जोर से ऊँ भूर्भुवः स्वः , ऊँ भूर्भुवः स्वः बोलने लगी और एक हाथ से तैरते हुये कुछ ही क्षणों में उफनती नदी की तेज़ धारा को पार कर दूसरे किनारे पहुंच गई।
शास्त्री जी पूरे भीग गये और क्रोध में बोले – मूर्ख औरत ये क्या पागलपन था। अगर डूब जाते तो…।”
महिला बड़े आत्मविश्वास से बोली कि शास्त्री जी डूब कैसे जाते । आपका बताया मंत्र जो साथ था ।
महिला ने शास्त्री जी को बताया कि मैं तो पिछले दस दिनों से इसी तरह नदी पार करके आती और जाती हूँ ।
शास्त्री जी बोले क्या मतलब ?”
महिला बोली कि आपने ही तो कहा था कि इस मंत्र से भव सागर पार किया जा सकता है ।
लेकिन इसके कठिन शब्द मुझसे याद नहीं हुये। बस मुझे ऊँ भूर्भुवः स्वः याद रह गया। तो मैंने सोचा “भव सागर” तो निश्चय ही बहुत विशाल होगा जिसे इस मंत्र से पार किया जा सकता है , तो क्या इस आधे मंत्र से छोटी सी नदी पार नहीं होगी ?
और मैंने पूरी एकाग्रता से इसका जाप करते हुये नदी सही सलामत पार कर ली। बस फिर क्या था।
मैंने रोज के 20 रूपये इसी तरह बचाये और बचाये गये पैसों से आपके लिए अपने घर में आज की रसोई तैयार की ।”
शास्त्री जी का क्रोध व झुंझलाहट अब तक समाप्त हो चुकी थी। शास्त्री जी उसकी बात सुनकर किंकर्तव्यविमूढ़ थे। उनकी आँखों में आंसू आ गये और वे बोले… ।
माँ मैंने अनगिनत बार इस मंत्र का जाप किया और इसकी महिमा बतलाई। पर तेरे विश्वास के आगे सब बेसबब रहा ।”
“इस मंत्र का जाप जितनी श्रद्धा से तूने किया उसके आगे मैं नतमस्तक हूँ। तू धन्य है ! इतना कहकर उन्होंने उस महिला के चरण स्पर्श किये।
उस महिला को कुछ समझ में नहीं आ रहा था। वो खड़ी की खड़ी रह गई। शास्त्री भाव विभोर से आगे बढ़ गये और बोले मां “भोजन नहीं कराओगी , बहुत भूख लगी है ।”