मंत्रोच्चारण का महत्व
मंत्रोच्चार का महत्व
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मन को नियंत्रित करके उसे एक तंत्र में लाने के लिए ही मंत्र का उच्चारण करते हैं। ‘मंत्र’ का अर्थ है मन को एक तंत्र में लाना। मंत्रोच्चारण के द्वारा ही मन को इन्द्रियों के आधिन किया जा सकता है।
सकारात्मक ध्वनियां शरीर के तंत्र पर सकारात्मक प्रभाव छोड़ती हैं जबकि नकारात्मक ध्वनियां शरीर की ऊर्जा तक का ह्रास कर देती हैं। मंत्र और कुछ नहीं, बल्कि सकारात्मक ध्वनियों का समूह है, जो विभिन्न शब्दों के संयोग से पैदा होते हैं।
वैज्ञानिकों का भी मानना है कि ध्वनि तरंगें ऊर्जा का ही एक रूप हैं। मंत्र में निहित बीजाक्षरों में उच्चारित ध्वनियों से शक्तिशाली विद्युत तरंगें उत्पन्न होती हैं, जो चमत्कारी प्रभाव डालती हैं। ‘मननत त्रायते इति मन्त्रः’ – जब आप इस पर मनन करते हैं, तो आपकी ऊर्जा बढ़ती है। ऐसा कहा गया है-मन्त्रों के अर्थ ज़रूर होते हैं, लेकिन इनका अर्थ केवल हिमशिला के कोने जैसा है। अर्थ इतना ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं है, जितना इन मन्त्रों की तरंगों को महसूस करना है।
मंत्र, शब्दों का संचय है जो इष्ट को प्राप्त करने और अनिष्ट बाधाओं को दूर करने का मार्ग है। मंत्र शब्द में ‘मन’ का तात्पर्य मन और मनन से है और ‘त्र’ का तात्पर्य शक्ति और रक्षा से है । मंत्र जप से व्यक्ति को पूरे ब्रह्मांड की एकरूपता का ज्ञान प्राप्त होता है। मन का लय हो जाता है और मन भी शांत हो जाता है। मंत्रजप के अनेक लाभ हैं- आध्यात्मिक प्रगति, शत्रु का विनाश, अलौकिक शक्ति पाना, पाप नष्ट होना और वाणी की शुद्धि आदि। ये सभी लाभ तभी प्राप्त हो सकते हैं जब व्यक्ति इनका उच्चारण ठीक प्रकार से करे।
शिक्षा के विस्तार के साथ उच्चारण की अशुद्धियाँ काफ़ी बढ़ गयी हैं खासकर मंत्र उच्चारण में। ज़माने के तेज़ी से बढ़ने के साथ उच्चारण की शुद्धता पर उतना ध्यान और समय नहीं दिया गया जितना आवश्यक है। मंत्र उच्चारण में गलत उच्चारण का सिलसिला बढ़ता जा रहा है। शुद्ध उच्चारण के अभाव में मंत्र का प्रभाव अधूरा रह जाता है। मंत्र का मौखिक रूप आदमी के स्वभाव, सभ्यपन और चरित्र का तात्कालिक दर्पण दर्शाता है। इसलिए मौखिक रूप में मंत्र उच्चारण का महत्त्व कहीं अधिक है।
पं.संजीव शुक्ल ‘सचिन