मंजिल यूँ ही नहीं मिल जाती,
मंजिल यूँ ही नहीं मिल जाती,
चले बिना राहों में।
संघर्ष करना पड़ता है ,
दिन रात जमानों में।
गिरकर उठना – उठकर गिरना,
फितरत है जमाने की।
बार – बार उठकर चलने की जज्बा है,
जमाने को बताने की।
…..✍️ योगेन्द्र चतुर्वेदी