मंजिल की तलाश
बहकती है मचलती है
टूट कर बिखर जाती है
जिंदगी है एक शायर की ग़ज़ल
अरमानों को लफ्ज दे जाती है
टूटे फूटे शब्दों को
एक जुबां दे जाती है
जिंदगी है एक औरत की जुबान
न जाने कब सिल जाती है
मंजिलों की तलाश में
बेघर सी हो जाती है
जिंदगी है एक किराये की जमीन
न जाने कब बिक जाती है
मोह्हबत के इंतजार में
फना हो जाती है
जिंदगी है एक शब्द की मोहताज
न जाने कब फिसल जाती है
एक मोह्हबत ही तो नहीं दुनिया में
बाकी फर्ज और भी हैं
जिंदगी नहीं है सिर्फ प्यार का नाम
सबक हजारों और भी दे जाती है
दीपाली अमित कालरा