मंजिल का अवसान नहीं
मंजिल का अवसान नहीं
अवरोध का मिल जाना हीं, खंडित श्रम गुणगान नहीं।
गतिरोध ना मिट पाना हीं मंजिल का अवसान नहीं।
जिन्हें चाह है इस जीवन में, स्वर्णिम भोर उजाले की,
उन राहों पे स्वागत करते,घटा टोप अन्धियारे भी।
इन घटाटोप अंधियारों का, संज्ञान अति आवश्यक है,
गर तम से मन घन व्याप्त हो,सारे श्रम निरर्थक है।
राहों में लड़ गिर पड़ हीं नर,सीख पाता है जीवन ज्ञान,
मात्र जीत जो करे सुनिश्चित,नहीं कोई ऐसा विज्ञान।
एक चोट से घबड़ाना क्यों , गिर गिर कर नादान कहीं।
सौ हार पर एक जीत की ,है खुशबू गुमनाम नहीं।
अवरोध का मिल जाना हीं, खंडित श्रम गुणगान नहीं।
गतिरोध ना मिट पाना हीं मंजिल का अवसान नहीं।
अजय अमिताभ सुमन