मंजिल अपनी दूर
मई दिवस पर समसामयिक गीत
कठिन परिश्रम करें नित्य हम भारत के मजदूर.
जाने क्यों फिर भी रहती है मंजिल अपनी दूर..
गर्मी सर्दी जाड़ा बारिश हर मौसम को झेल रहे.
मजदूरी दो सौ दे आटा गायब सब्जी तेल रहे.
अन्धकार में बीते जीवन मिलता हमें प्रकाश नहीं.
हाथ पाँव जब घायल होते तो इलाज अवकाश नहीं.
नियति हमारी शोषित होना यह समाज मजबूर
जाने क्यों फिर भी रहती है मंजिल अपनी दूर..
शिक्षा स्वास्थ्य चिकित्सा सुविधा सारी हमसे दूर रहे
संतति अपनी मजदूरी ही करने को मजबूर रहे
बरस बहत्तर बीते साथी फिर भी अब तक घाव हरा
होठों पर मुस्कान रखें हम यद्यपि दिल में दर्द भरा
सबके ही सहयोगी हम पर मन में नहीं गुरूर
जाने क्यों फिर भी रहती है मंजिल अपनी दूर..
कागज़ पर ही चले योजना इसका हमको भान नहीं
पी० ऍफ़० और पेंशन बीमा क्या होता है ज्ञान नहीं
बेटी व्याही कर्ज भाग्य में ऐसा है जीवन अपना
मजदूरी में भुगतें क्या-क्या कर्जमुक्ति ही है सपना
मोदीजी से आस हमारी समझें हमें हुजूर
जाने क्यों फिर भी रहती है मंजिल अपनी दूर..
–इंजी० अम्बरीष श्रीवास्तव ‘अम्बर’