#मंगलकामनाएं
#मंगलकामनाएं
■ देवोत्थान एकादशी की।
[प्रणय प्रभात]
विभिन्न तिथियों व उनसे जुड़े विविध तीज-त्यौहारों के मामले में सनातन धर्म का कोई जोड़ नहीं। उस पर बात एकादशी की हो, तो कहना ही क्या। एकादशी भी एकाध या दो-चार नहीं, बीसियों। सबका अपना-अपना विधान, आपना-अपना महात्म्य। सबसे पवित्र मानी जाने वाली तिथियों में सबसे प्रमुख है एकादशी। वहीं एकादशी में सर्वोपरि है देवोत्थान एकादशी। जिसे हम लोक बोली में देव-उठान ग्यारस के नाम से जानते हैं। इसके अलावा इसे धर्म-साहित्य की भाषा में “देव-प्रबोधिनी एकादशी” भी कहा जाता है। जो हम आज कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष में आस्था के साथ मनाने जा रहे हैं।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को भगवान श्री हरि (विष्णु) चार माह के लिए शयन हेतु क्षीर-सागर में शेष-शैया पर चले जाते हैं। जिसे योग-निद्रा कहा जाता है। यह निद्रा देवोत्थान एकादशी के दिन पूर्ण होती है। इस पर्व की पूर्व संध्या चातुर्मास (चौमासा) समाप्त हो जाता है। साथ ही समाप्त हो जाते हैं चार माह के लिए प्रभावी वे धार्मिक प्रतिबंध, जिनमें मांगलिक आयोजन निषिद्ध होते हैं। प्रतिबंध समाप्ति के बाद मंगल-कार्यों का एक नूतन सत्र देव-उठान एकादशी से पुनः आरंभ होता है। जो समूचे जनजीवन को आह्लादित, उल्लासित करता है। सम्भवतः यही वो कारण है, जो इस एकादशी को अन्य से अलग और विशिष्ट बनाता है।
देवोत्थान से पूर्व चौमासे के प्रतिबंध सत्य सनातन धर्म की वैज्ञानिकता व दूरदर्शिता का एक जीवंत प्रमाण है। जो हमारे पूर्वज ऋषि-महात्माओं के विशद ज्ञान व अनुभव का भी परिचय देता है। वर्षाकाल में मांगलिक कार्यक्रमों पर चार माह की रोक सदियों पूर्व भी सकारण थी, आज भी है। इनमें कृषि-प्रधान देश के किसानों की खेती-किसानी के कार्य में व्यस्तता, वर्षाजनित व्यवधान, कीट-पतंगों व ऋतुजन्य रोगों की आशंकाएं, मार्ग-बाधा व सम्भावित जोख़िम, प्राकृतिक आपदाओं की आशंकाएं, खाद्य-पेय सहित सब्ज़ियों और वनस्पतियों में संक्रमण प्रमुख हैं।
यही कारण है कि दीपावली तक आर्थिक तौर पर समृद्ध हुए जनजीवन के लिए नव माँगलिक सत्र का श्रीगणेश इस पर्व से शुभ ही नहीं सभी के लिए सुविधा-जनक भी माना जाता है। जब “सबके हाथ जगन्नाथ” होते हैं और आम जन शारीरिक, मानसिक व आर्थिक तौर पर आयोजनों का भरपूर आनंद लेने की स्थिति में होता है।
तो आइए! आज हम सब श्रद्धा के साथ मनुहार करें, देवशक्तियों से जागरण के लिए। ताकि व्याधि व व्यवधान रूपी दानवीय शक्तियों का शमन हो। मंगल कार्य निर्बाध व निर्विघ्न रूप से सम्पन्न हों। आम जन उमंग व उल्लास से परिपूर्ण रहे। हमारी शाश्वत परम्पराओं की सार्थकता सिद्ध हो। सर्वजन सुखाय, सर्वजन हिताय की सनातनी मान्यता साकार हो और ईश-कृपा में कोई कमी न आए। समस्त सनातनी परिवार गन्नों की मढ़ैया के तले बांस की टोकरी के नीचे दीप-ज्योति में प्रतीकात्मक रूप से विराजित प्रभु श्री हरि से शुभ-मंगल के लिए जागने की मनुहार करें। घर-घर से देवोत्थान के मंगलगान के समवेत स्वर सांध्यवेला को झंकृत व अलंकृत करें। देवगण जागृत हों, आसुरी शक्तियां व प्रवृत्तियां सुप्त हों। मंगलमयी व मोदमयी उजियारे में समस्त नैराश्य व मलीनता के तामसी भाव लुप्त हों। यही है हमारी कामनाएं। जय श्री हरि।।
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■प्रणय प्रभात■
●संपादक/न्यूज़&व्यूज़●
श्योपुर (मध्यप्रदेश)