Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
12 Sep 2016 · 5 min read

मंकी -बंदर

सर्दी की एक दोपहर की गुनगुनी धूप में बंदरों का एक समूह पप्पू की छत पर सुस्ता रहा था । घर के लोग सब बाहर गए हुए थे इसलिए छत खाली थी सो इन बंदरों ने वहाँ डेरा जमाया हुआ था। कुछ छोटे बंदर यहाँ वहाँ उछलते कूदते खेल रहे थे । इनमें मंकी बंदर भी था । यह नाम उसे पप्पू ने दिया था । पप्पू उस घर के मालिक का बेटा था और पास की प्राथमिक पाठशाला में पढ़ता था । पप्पू से जब उसका सामना होता था वह उसे मंकी कह कर बुलाता था । वह कभी अभी उसे कुछ खाने को भी देता था ।
पप्पू के घर के बड़े सदस्य बंदरों के शत्रु थे । वे जब भी उन्हें छत पर या घर के आस पास देखते पत्थर या लाठी दिखाकर डराते और खदेड़ कर भगाते थे । लेकिन इसमें उनके अकेले का दोष नहीं था । बंदरों की आदत थी कि खुले में किसी का कोई सामान जैसे बर्तन कपड़ा इत्यादि पा जाते तो उठा कर भाग जाते । फिर लोगों को अपना सामान वापस पाने के लिए उनके पीछे भागना पड़ता था ।
ये असल में बंदरों की चाल थी । जब वो किसी का कोई सामान उठा ले जाते वो दूर नहीं जाते वल्की छत कि मुंडेर पर या आसपास के पेड़ों पर चढ़ जाते और वस्तु के मालिक को दिखा दिखा कर चिढ़ाते । लोग सामान वापस लेने के लिए रोटी का टुकड़ा ,चना या अन्य कोई खाने कि चीज इनकी ओर फेंकते तो वे सामान छोड़ देते और खाने कि चीज कि ओर लपकते । लोग अपना सामान ले लेते । ये आए दिन होता था । खाना न मिलने पर वो लोगो को ख़ूब छकाते और कपड़ा तो दांतों से फाड़ ही डालते थे । तब मनुष्यों और इनके बीच कटुता बढ़ जाती । अपितु ये स्थिति कम ही आती । लोग नुकसान से बचने के लिए जल्दी ही उन्हें खाने की वस्तु दे देते थे। वैसे तो आसपास के बाग बगीचों ,खेत खलिहानों से भी उन्हें भोजन उपलब्ध था लेकिन इन्सानों के साथ आँख मिचौली का अलग मज़ा था । बच्चों को डराने ,चिढाने और उनके साथ खेलने में भी बड़ा आनंद था । हालाकि उनसे बच के भी रहना होता था । कुछ बच्चे अकारण भी उनके पीछे पड़ जाते और पत्थर भी मारते थे । फिर भी दिन मज़े के थे।
गाँव मेँ अभी टेलीवीजन नहीं पहुंचा था । केबल टीवी की आमद अभी दूर थी ।
तभी एक दिन पता चला गाँव मेँ टीवी आ गया। दूसरे दिन मुखिया के घर टीवी आ गया । मकान की छत पर टीवी एंटीना लग गया । बंदरों के लिए ये नयी और कौतूहल जनक वस्तु थी । छत खाली होते ही मंकी बंदर और उसके समूह के छोटे बड़े सदस्य वहाँ पहुँच गए । सभी एंटीना देख कर उत्सुक और उत्तेजित थे । बच्चों को डांट कर उसके पास जाने से मना किया गया था । मंकी बंदर का चाचा ,जो समूह का सबसे स्मार्ट बंदर था आगे बढ़ा । पहले उसने हाथ से छूकर देखा फिर दाँत से काटकर देखा । जब ऐसा करके उसे कुछ न हुआ तो उसकी हिम्मत बढ़ गयी और स्वभाव बस वो उसे हिलाने लगा और फिर उससे लटक कर झूल ही गया । तभी मुखिया का लड़का एक डंडा लेकर छत पर चढ़ आया और बंदरों की तरफ मारने दौड़ा। सारे बंदर भाग खड़े हुए । कुछ कूदकर पड़ोस की छत पर चले गए और कुछ पास के पेड़ पर चढ़ गए। लड़का एंटीना को ,जो एक तरफ झुक गया था ठीक करके चला गया ।
कुछ ही दिनों में गाँव के घर घर में टीवी आ गये । मकानों की छतों और खपरेलों पर वैसे ही एंटीने लग गए ।
कुछ ही दिनों में गाँव के माहौल में कुछ बदलाव आया। मंकी और उसके साथियों को लगने लगा था कि कुछ अजीब घट रहा है ।
शाम होते ही गली बाज़ार मुहल्ले खाली से हो जाते । लोग अपने घरों में दुबक जाते । बच्चे पहले जैसे गली मुहल्ले में या छतों पर धमाचौकड़ी नहीं मचाते उनके पीछे भी नहीं भागते । मंकी बंदर का दोस्त पप्पू भी रोटी लेकर उससे मिलने छत पर नहीं आ रहा था ।
दिन मायूसी में गुजरने लगे
ऐसे ही एक रोज गाँव सुनसान था । मंकी बोर हो रहा था । उसने पप्पू के घर कि बैठक के रोशनदान में झांक कर देखा । टीवी पर क्रिकेट का खेल चल रहा था । पप्पू कि माँ को छोड़ कर घर के सभी सदस्य टीवी के सामने बैठे खेल देख रहे थे । उसने कुछ और घरों का भी जायजा लिया । सब जगह टीवी पर वही खेल चल रहा था और लोग टीवी के सामने बैठे थे । मंकी का मन नहीं लग रहा था । वो पप्पू कि छत पर जाकर अकेला ही बैठ गया बड़ी ऊबन हो रही थी ।
तभी उसे कुछ याद आया । जब उसके चाचा ने मुखिया के टीवी एंटीना को हिलाया था तो मुखिया का लड़का तुरंत छत पर आगया था । उसे कुछ सूझा । काम थोड़ा जोखिम भरा था लेकिन उससे रहा नहीं जा रहा था ।
उसने अपने सारे दोस्तो को इकठ्ठा कर एक गुपचुप मीटिंग की और सबको वैसा करने को राजी कर लिया जैसा उसके दिमाग में विचार आया था ।
अगली शाम मंकी बंदर और उसके बहुत से साथी मोहल्ले की छतों पर चढ़ गए जहां एंटीने लगे थे । सभी लोग घरों के अंदर टीवी देखने में व्यस्त थे । मंकी पप्पू की छत पर था । उसने एक चीख की आवाज़ निकाली और टीवी एंटीना पर चढ़ गया और उसे झकझोरने लगा । ये सभी बंदरों के लिए संकेत था । सभी एंटीनाओ पर चढ़ कर झूल झूलकर उन्हें हिलाने लगे । थोड़ी देर वो एसा कर के भाग कर आस पास के पेड़ों पर चढ़ गये और वहाँ से मोहल्ले का नजारा देखने लगे ।
उन्होने देखा कि कुछ लोग घरों से बाहर आये । कुछ लोग ऊपर जाकर एंटीना ठीक करने लगे । कुछ लोग बाहर आकर आपस में कुछ बातचीत करने लगे । कुछ बच्चे बाहर निकल कर खेलने लगे । कुछ बच्चों ने उन्हें देख लिया और बंदर बंदर कहकर चिल्लाने लगे । थोड़ी देर के लिए ही सही मोहल्ले में रौनक हो गयी । मंकी बंदर और उसके साथियों को इससे बहुत मज़ा आया।
अब तो जब भी वो बोर होते एंटीने हिला कर भाग जाते ।
इन्सानों को छेडने का एक नया जरिया उन्हें मिल गया था ।

Language: Hindi
377 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from Ravi Ranjan Goswami
View all
You may also like:
देर तक मैंने
देर तक मैंने
Dr fauzia Naseem shad
ज्ञान-दीपक
ज्ञान-दीपक
Pt. Brajesh Kumar Nayak
हर बार मेरी ही किस्मत क्यो धोखा दे जाती हैं,
हर बार मेरी ही किस्मत क्यो धोखा दे जाती हैं,
Vishal babu (vishu)
पीठ के नीचे. . . .
पीठ के नीचे. . . .
sushil sarna
बढ़ना होगा
बढ़ना होगा
सुरेश अजगल्ले 'इन्द्र '
आँखें दरिया-सागर-झील नहीं,
आँखें दरिया-सागर-झील नहीं,
महावीर उत्तरांचली • Mahavir Uttranchali
#शेर-
#शेर-
*Author प्रणय प्रभात*
देखो भालू आया
देखो भालू आया
Anil "Aadarsh"
क्या पता...... ?
क्या पता...... ?
Dr. Akhilesh Baghel "Akhil"
आपस में अब द्वंद है, मिलते नहीं स्वभाव।
आपस में अब द्वंद है, मिलते नहीं स्वभाव।
Manoj Mahato
पुरखों का घर - दीपक नीलपदम्
पुरखों का घर - दीपक नीलपदम्
नील पदम् Deepak Kumar Srivastava (दीपक )(Neel Padam)
समय यात्रा संभावना -एक विचार
समय यात्रा संभावना -एक विचार
Shyam Sundar Subramanian
"राष्टपिता महात्मा गांधी"
Pushpraj Anant
पति
पति
लक्ष्मी सिंह
गर्मी आई
गर्मी आई
Dr. Pradeep Kumar Sharma
अपना बिहार
अपना बिहार
AMRESH KUMAR VERMA
शीर्षक - कुदरत के रंग...... एक सच
शीर्षक - कुदरत के रंग...... एक सच
Neeraj Agarwal
शिव की बनी रहे आप पर छाया
शिव की बनी रहे आप पर छाया
Shubham Pandey (S P)
अगर तूँ यूँहीं बस डरती रहेगी
अगर तूँ यूँहीं बस डरती रहेगी
सिद्धार्थ गोरखपुरी
अधि वर्ष
अधि वर्ष
लक्ष्मी वर्मा प्रतीक्षा
अहंकार
अहंकार
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
क्या हुआ गर नहीं हुआ, पूरा कोई एक सपना
क्या हुआ गर नहीं हुआ, पूरा कोई एक सपना
gurudeenverma198
लखनऊ शहर
लखनऊ शहर
डॉ प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, प्रेम
बेटा तेरे बिना माँ
बेटा तेरे बिना माँ
Basant Bhagawan Roy
हाथ में फूल गुलाबों के हीं सच्चे लगते हैं
हाथ में फूल गुलाबों के हीं सच्चे लगते हैं
Shweta Soni
के कितना बिगड़ गए हो तुम
के कितना बिगड़ गए हो तुम
Akash Yadav
*चारों और मतलबी लोग है*
*चारों और मतलबी लोग है*
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
मुझसे मेरी पहचान न छीनों...
मुझसे मेरी पहचान न छीनों...
Er. Sanjay Shrivastava
सब ठीक है
सब ठीक है
पूर्वार्थ
रहती है किसकी सदा, मरती मानव-देह (कुंडलिया)
रहती है किसकी सदा, मरती मानव-देह (कुंडलिया)
Ravi Prakash
Loading...