मँहगाई (ब्रजभाषा में घनाक्षरी छंद)
🙏
!! श्रीं !!
सुप्रभात !
जय श्री राधेकृष्ण !
शुभ हो आज का दिन !
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मँहगौ गुलाल भयौ मँहगी अबीर बिकै ,
मँहगी है रोरी – रंग मँहगौ है गेरिबौ ।
मँहगी है पिचकारी फगुआहू मँहगौ है ,
कठिन भयौ है याकी मार अब झेलिबौ ।।
मेंहदी की लौदरी-सी मार रही मँहगाई ,
मँहगौ है नौन तेल लकड़ी खरिदिबौ ,
‘ज्योति’ मुसकान भई मौंहड़े की मँहगी रे ,
भूल जाऔ नंदलाल होरी अब खेलिबौ ।।
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देख-देख मँहगाई बदल रही हैं रीति,
नीकौ न लगै है महमानन कौ आयबौ ।
दार, साग ,तेल, घीउ, मेवा के चढ़े हैं दाम ,
मँहगौ भयौ है खीर, पूआ, पूरी खायबौ ।।
तनन में जान नाय, आँटिन में दाम नाय,
मँहगौ भयौ है रिस्तेदारीहू में जायबौ ।
मँहगी मिठाई, पेड़ा, बरफी के दाम बढ़े,
‘ज्योति’ बड़ौ मँहगौ है लत्ता सिमबायबौ ।।
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राधे…राधे…!
🌹
महेश जैन ‘ज्योति’,
मथुरा ।
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