भ्रष्टाचार
किये जतन लाखों सतत, खोज-खोज पर्याय !
हुआ न भ्रष्टाचार का,… खत्म कभी अध्याय !!
जमा हुआ है खून में, …..ऐसे भ्रष्टाचार !
ज्यों बरनी में तेल की,डूबा हुआ अचार !!
कर लेना ही ठीक है, बात हमे स्वीकार !
आगे भ्रष्टाचार के….. हम जाते हैं हार !!
रमेश शर्मा