भ्रष्टाचार क्यों??
?️ #भ्रष्टाचार_क्यों..? ?️
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मैं आजकल अपने पैतृक राज्य बिहार के दौरे पर हूँ, एक कामकाजी व्यक्ति जब फुर्सत के पल में होता है तब दिमागी कीड़े कुलबुलाने लगते हैं कुछ नया या फिर कुछ न कुछ करने को उकसाते रहता है , आज चार दिन से मैं कुछ घरेलू कार्य निपटाने हेतु ब्लॉक का चक्कर काट रहा हूँ,रोज सुबह – सुबह ही ब्लॉक पहुंच जाता हूँ। यहाँ इन फुर्सत के पलों में जो कुछ भी देखने व सुनने को मिला आप यकीन नहीं मानेंगे किन्तु मेरे लिए अप्रत्याशित था।
मैंने देखा यहाँ जैसे रिश्वत देने की होड़ सी लगी है, गौर कीजिएगा रिश्वत देने की। हमारे स्वर्ग से सुन्दर सपनों से प्यारे इस देश में कुछ एक जगह जहाँ अप्रत्याशित रूप से अगर रिश्वत लेने या देने की प्रथा नहीं हो तो वह हमें मालूम नहीं फिर भी उस जगह को छोड़कर बाकी सर्वत्र यह शय प्रचुर मात्रा में पाया जाता है हर जगह रिश्वत लेने की प्रथा है किन्तु यहां की स्थिति एकदम भिन्न है।
यहाँ जबरजस्ती रिश्वत देने की होड़ सी लगी हैं, हमने देखा यहाँ लोग चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी से लेकर प्रथम श्रेणी के बाबू को एकांत में बुलाते है…ऐ सर हेने आईं ना.. एक मिन्ट खतीरा होने अलगे चली…और फिर वह कथित सर उनके साथ एकांत में जाते हैं वे महानुभाव उन्हें बड़े ही प्यार से रिश्वत रूपी नोट पकड़ाते हैं जैसे दमाद को पनलगौनी दे रहे हों।
रिश्वत देने के बाद बड़े ही असहाय भाव से जैसे कोई बीना माँ बाप का बच्चा हमारी जुबान मे “टूअर लईका” पूछते है…ऐ सर अब त कमवा हमार हो जाई न..? और वो कथित सर जैसे उनके बाप का राज हो यहाँ और वो हम पे बस एहसान ही करने के लिए भर्ती हुए हों, अपने पद पे आसीन हुए हों पौकेट में रिश्वत का नोट ठूसते हुये कहते है…हाँ हाँ फलाना जी या फिर केवल क्यों न वह उक्त व्यक्ति उस कथित सर के बाप के उम्र का ही हो बीना किसी सम्मान सूचक शब्द के केवल उसका नाम लेकर …हां हां जाओ काल परसों आना तुम्हरा कथित कार्य हो जायेगा।
वह उक्त इंसान वहाँ से रिश्वत देकर ऐसे खुशी- खुशी घर निकलता है जैसे उसने पानीपत की जंग फतह कर ली हो।
अब आपहीं बताईये जहाँ के लोगों की ऐसी मानसिकता बन गई हो वहाँ क्रप्शन, कथित भ्रष्टाचार मिटाने की बात क्या सोचा भी जा सकता हैं कभी..?, हमें तो नहीं लगता । आज यह क्रप्शन यह भ्रष्टाचार हमारे लिए मनोविकार बन गये है। हमारे रक्त में घूल से गये हैं, हम छटपटाने का दिखावा मात्र कर रहे है किन्तु पूर्ण रूप से संपूर्ण मनोवेग के साथ जुड़े हैं इस भ्रष्टाचार से। हमारी मनोबृति बन गई हैं क्यों जाय हम लाईन में खड़े होने कुछ पैसे देंगे हमारा कार्य हो जायेगा।
हाँ जी हाँ आपका कथित कार्य हो तो अवश्य ही जायेगा , आपके पास पैसे हैं आपको कोई फर्क नहीं पड़ेगा किन्तु जरा उस उक्त इंसान के संबद्ध सोचिए जिसके पास देने को रिश्वत के पैसे नहीं है और अपने जीविकोपार्जन के निहित चलनेवाले प्रतिदिन के कार्य को छोड़ पिछले कई दिनों से वह इसी कार्य के लिए लाईन लगा रहा है किन्तु उसे पूरे दिन के थका देने वाले इस पहल के बाद भी निराशा ही हाथ लगती है। अन्दर ही अन्दर आपका कार्य हो जाता है और वह गरीब प्रति दिन अपने बारी के इंतजार में पूरे दिन खड़े रहने के बाद साम को निराश घर लौटता है।
आपने कभी नहीं सोचा और सोचना भी नहीं चाहते किन्तु आपही के कारण हाँ जी हाँ बिल्कुल आपही के कारण उस गरीब के बच्चे पिछले दो दिनों से भुखे हैं, अब आप कहेंगे जनाब मेरे कारण क्यों..? तो जनाब आपने जो रिश्वत दी वैसे ही आप जैसे कुछ और लोग भी थे जो रिश्वत देकर फक्र महसूस कर रहे थे पिछले दो दिनों से उन्हीं रिश्वतदाताओं का कार्य अंदर हो रहा है और वह गरीब अपने बारी की प्रतिक्षा में लाईन लगाये खड़ा है ।
अब जब वह काम पर जायेगा नहीं पैसे कमाकर लायेगा नहीं तो आपही बताईये रोज कमाने रोज खाने वाले उस निरीह प्राणी के बच्चे उपवास नहीं करेंगे भुखा नहीं सोयेंगे तो क्या प्रितीभोज करेंगे, तो उनके इस दो दिनों के उपवास भुखमरी का कारण कौन …? वो आप हीं तो है…….मैं आपही से पुछता हूँ आखिर उस उक्त व्यक्ति के कार्य में होने वाले इस विलंब का क्या आप को कोई और कारण दिखता है….नहीं न …कोई और कारण है ही नहीं,हो हीं नहीं सकता। वह आपके कारण परेशान है और आप खुद के कारण भ्रष्टाचार पीड़ित।
अतः सिस्टम को दोष देना बंद कीजिए पहले खुद के मनोभाव बदलिए, लाईन में आईये यहाँ इस लाईन में आपसी सद्भाव बढेगा, समानता भी आयेगी और हो सकता है ऐ सरकारी लाटसाहब निःशुल्क “ये निःशुल्क शब्द आपसे मिलने वाले रिश्वत रुपी पैसों के लिए है, वर्ना इन्हें तो आपके ही कार्य के लिए सरकार बन्डल- बन्डल नोट दे रही है”…हाँ तो यह जनाब हाँ जी वहीं कथित लाटसाहब आपका कार्य निःशुल्क करने को मजबूर होंगे ।
कुछ लोगों से मैने इस संबद्ध बात भी किया किन्तु उनका सीधा सा उत्तर था बीना घूस के कोई भी कार्य संभव नहीं , फिर भी अगर होता है तो समय बहुत लगेगा अब आप ही बताईये इतना समय किसके पास है …मुझसे उल्ट प्रश्न पूछते है। जब की यहीं महाशय गांव के मंदिर, ब्रह्म स्थान , पुराना कुआं (ईनार) वाले चबुतरे पर पुरा पुरा दिन तास खेलनें , डींगें हांकने, दुसरे के घरों की बुराई करने में अपना सारा समय बीता देते हैं , वो इंसान समय बर्बाद होने का रोना रोता है जब हमारा कार्य कुछ पैसे मात्र से बीना लाईन में बीना समय बर्बाद किए हो जा रहा है तो हम क्यों समय बर्बाद करें, लाईन लगकर शरीर को कष्ट दें।
ये वहीं लोग है जो घर बैठे संपूर्ण सिस्टम को गालियां देते हैं हर दिन हर पल कोसते रहते हैं इनकी जुबन रातो दिन यह कहते नहीं थकती कि बहुत भ्रष्टाचार है हमारे देश में, कैसे भला होगा हमारे इस देश का ? अगर यहीं हाल रहा तो कुछ भी नहीं हो सकता हमारे इस देश का वगैरह- वगैरह नाजाने और क्या – क्या–?
लेकिन जब कुछ करने की बारी आती है तो समय खराब क्यों करें, समय का अभाव है, एक अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता, हम क्यों करें जैसे जुमले सुना कर , रोना रोकर अपना पल्ला झाड़ लेते है।……खैर हमें क्या करना , हम क्यों पड़े इस पचड़े में।
जो जैसा चल रहा है चलता रहेगा, जिसे जो पसंद वहीं काम करेगा
चलिए हमारा काम आज चार दिनों के अथक प्रयास के बाद होगया है चलते है। जय हो जनता।
आपकाः–
✍️पं.संजीव शुक्ल “सचिन”