भ्रमों की दुनिया
भ्रमों की दुनिया
हम कितने भ्रमित हैं,और इस भ्रम को कितने प्रेम से गले लगाए बैठे हैं।
पहला भ्रम तो यही,कि इस दुनिया में रहते हैं, जहां सब मिथ्या है,फिर भी उसी मिथ्या के पीछे जीवन गंवाए बैठे हैं।।
और इस भ्रम की दुनिया में,हर वर्ष एक और भ्रम रचते हैं—”नया वर्ष है!”ये भ्रम भी मन के संग-संग सजाए हैं।नया वर्ष कहां से आ गया? हम तो पुराने ही हैं,हमारे हालात पुराने हैं,वही चेहरा, वही चिंता,वही उलझनें साथ लिए,कैलेंडर का एक पन्ना फाड़कर,बस आगे बढ़ जाते हैं।।
हम एक सुनहरा भ्रम रचते हैं,और उसमें सुकून ढूंढते हैं।सोचते हैं—”अब सब अच्छा होगा,इस वर्ष वो सब कर जाएंगे,जो अब तक नहीं कर पाए।”लेकिन फिर एक और वर्ष बीत जाता है,हम उसी भ्रम में उलझे रह जाते हैं।।
फिर भी…भ्रम से ही तो उम्मीद है,भ्रम से ही सृष्टि है।
कभी-कभी सोचता हूं—अगर ये भ्रम भी टूट जाए,
तो क्या बचेगा हमारे पास? भ्रम में जीते हैं,
भ्रम में सपने बुनते हैं।।
भ्रम टूटे या न टूटे,चलते रहना ही जीवन है।
शायद एक दिन—इस भ्रम से भी परे,कोई सच्चाई मिलेगी।पर तब तक,चलिए, नया वर्ष मान लें,
और इस भ्रम को गले लगाएं।।