भौतिकता की दौड़
भौतिकता की दौड़ में ,छूट रही पहचान ।
गौण सभी संबंध अब ,रहा कहाँ अब मान ।।
बेलगाम इस दौड़ में ,मंजिल से अनजान ।
कहीं नहीं ठहराव है ,अंतर् तक शमशान ।।
भाग-भाग बस भाग अब ,आफत में है जान ।
नित्य छूटता मूल से, सद्विवेक संज्ञान ।।
भाग रहा मन नित्य है ,खोई अब मुस्कान ।
चक्की में पिसती हुई,संघर्षों की आन।।
भागम भाग लगी यहाँ ,हैं दूजे अनजान ।
दर्द अकेला रो रहा ,करे अश्रु अवदान ।।
डा. सुनीता सिंह ‘सुधा’शोहरत
स्वरचित
वाराणसी
7/2/2022