भोली चिरइया आसमा के आंगन में,
भोली चिरइया आसमा के आंगन में,
उड़ उड़कर दौड़ लगाती है,
क्या होती है सरहद की हद,
उस बेहद को समझ न आती है।
गीत सयाने इस पार के गाकर,
वो भजन उसपार सुनाती है।
शत्रुता और रंगभेद की बातें,
उस कोयल को समझ न आती हैं।
उस भोली कोयल ने मानो
आसमा को ही आंगन माना है
ये तेरी और मेरी सी बातें
उस परिंदे को समझ न आती है
इतना तो ये कोयल भी जाने,
सीमाओं से हम बंधे नहीं हैं
बच्चे हम उस बेहद के सब,
भाई बहनों सा रिश्ता हमारा है,
जन जीवन परिवार हमारा है,
जन जीवन परिवार हमारा है।।