भोला पासवान शास्त्री : नर्त्तक से राजनेता का सफ़र
बिहार के मुख्यमंत्री रहे, कोढ़ा के विधायक रहे, स्वतंत्रता सेनानी स्व. भोला पासवान शास्त्री के परिवार भी कुछ दिन पहले तक चिकेन की दुकान चलाते थे ! अंतिम मुगल बादशाह बहादुर शाह ज़फ़र के पारिवारिक सदस्य कोलकाता में चाय की दुकान चलाते हैं ! वे मूलगैन और नर्त्तक भी थे।
सर्वप्रथम ऐसे स्वतंत्रता सेनानी परिवार को हम कितने सम्मान देते हैं । जबतक समाज ऐसे परिवार को सम्मान नहीं देंगे, तब कोई भी सरकार कुछ नहीं करेंगे । हम अपने राष्ट्रीय पर्व 26 जनवरी, 15 अगस्त को ऐसे परिवार को अनुमंडल स्तर पर कब ही आमंत्रण करते हैं ? हम किन्हें गणमान्य अतिथि बनाते हैं, सब जानता है ! वे 1967- कोढ़ा (सुरक्षित) से माननीय सदस्य, बिहार विधान सभा रहे।
कुछ लोगों को अभी भी यह महसूस होता है कि अगर वे ‘नेकटाई’ नहीं बाँधे, तो वे सभ्य नागरिक नहीं कहलायेंगे ! भारत के महादरणीय स्वतंत्रता सेनानी के जिक्र के समय अंग्रेजों को सम्मानित करने जैसे बोल कहना ‘सेनानी’ को असम्मान देने जैसा है । अपने -अपने धर्म की बड़ाई करना अच्छी बात है, किन्तु इस ‘डिबेट वाल’ पर ऐसा किया जाना अप्रासंगिक है ।
डॉ. अम्बेडकर के संविधानजन्य कार्य से निःसृत होकर ही भारत की अक्षुण्णता कायम है । माननीय भोला पासवान शास्त्री के संक्षिप्त जीवनवृन्त, जो एनसाइक्लोपीडिया ऑफ दलित’स इन इंडिया’स लीडर्स से साभार है, अग्र उल्लिखित है, द्रष्टव्य:- जन्म- 1914- बैरगाछी, जिला- पूर्णिया में । शिक्षा- शास्त्री (काशी विद्यापीठ) । सदस्य, डिस्ट्रिक्ट बोर्ड, पूर्णिया- 1939-1941; जेल यात्रा- 1942 अगस्त क्रांति- सेनानी के रूप में । आज़ादी से पूर्व 1946 में संयुक्त बिहार विधान सभा हेतु सदस्य । 1952 में संसदीय सचिव, स्थानीय स्वशासन मंत्रालय हेतु कार्य । 1952-53- बिहार सरकार में मंत्री । 1957 और 1962- बनमनखी (सु.) से विधायक । 1967- कोढ़ा (सु.) से विधायक । 1968-71 के प्रसंगश: तीन बार बिहार के मुख्यमंत्री । 1972-78- राज्यसभा सांसद । 1973-74- केंद्रीय मंत्री । 1978-81- राष्ट्रीय अनुसूचित जाति -अनुसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष । 10.09.1984- देहावसान।