भोलाराम का भोलापन
भोला राम का भोलापन
भोला राम और होशियार सिंह बाल्यकाल से ही सहपाठी और पक्के मित्र थे। उनकी जाति उनकी मित्रता में कभी आड़े नहीं आई। दोनों का तालुकात संपन्न परिवारों से था। होशियार सिंह नाम के अनुरूप तेज-तर्रार और होशियार था। जबकी भोलाराम नाम का भी और स्वभाव का भी, भोलाराम ही था। विपरीत प्रवृति के बावजूद दोनों की दोस्ती पक्की थी। दोनों की शिक्षा-दिक्षा भी साथ-साथ हुई। शिक्षा-दिक्षा के उपरांत दोनों ही बेरोजगार भी साथ-साथ ही हुए। होशियार सिंह अपनी बेरोजगार का कारण आरक्षण को मानता था। जबकि भोलाराम की बेरोजगारी का कारण सियासी गलियारों तक पहुंच का न होना था। भारत में बेरोजगारी युवाओं को कोरोना से भी अधिक गति से संक्रमित कर रही है। सरकारी विभागों की इम्यूनिटि दिन प्रतिदिन घटती जा रही है। सरकारी संस्थान व प्रतिष्ठान सेनेटाइज करके निजि हाथों में सौंपे जा रहे हैं। रोजगार के अवसर कुपोषण का शिकार हैं। इसलिए ही होशियार सिंह व भोलाराम बेरोजगार हैं।
ज्यों-ज्यों वक्त गुजरता गया, सरकारी नौकरियों का स्वरूप भी बदलता गया। सरकारी कर्मचारियों की सुविधाओं में बार-बार कटौती की गई। सरकारी कर्मचारियों व नौकरियों की हालत ऐसी कर दी कि सरकारी नौकरी से युवाओं का मोहभंग होने लगा। सभी विभागों में ‘कौशल विकास’ नामक बीमारी आ गई। जो सरकारी कर्मचारियों के पैंशन, भत्ते व अन्य सुविधाओं को जीम गई। ऐसे में भोलाराम व होशियार सिंह दोनों का ही सरकारी नौकरी से मोह-भंग हो गया। बेचारे बेरोजगारी के थपेड़े कब तक खाते? कब तक बेकार बैठे रहते? दोनों ने साझे में कारोबार करने का मन बनाया। गहन चिंतन-मनन के बाद उन्होंने शहर की ऑटो-मार्केट में स्पेयर-प्रार्टस की सांझी दुकान करने का मन बनाया।
दोनों ने कारोबारी योजना को अमली जामा पहनाया। ऑटो मार्केट में एक किराए की दुकान ली। दोनों बराबर का निवेश किया और बराबर के साझेदार हो गए। साझे के कारोबार में होशियार सिंह एक्टिव था जबकी भोलाराम पैसिव। साझे की दुकान में खर्चा, निवेश, लिभ, हानि सब कुछ बराबर-बराबर था।
शहर के होली मिलन उत्सव के लिए आयोजक आए। दुकान से चंदा ले गए। ऑटो-मार्केट में खंड-पाठ करवाया गया। लंगर लगाया गया। उसमें भी चंदा दिया। ऑटो-मार्केट में कांवड़-यात्रियों के स्वागत के लिए व्यवस्था की गई। उसके लिए भी चंदा दिया गया। बाला जी का जागरण हुआ। नवरात्रों में माता का जागरण हुआ। दोनों जागरण में भरपूर चंदा दिया गया। जन्माष्टमी, गोगा-नवमी, अयोध्या के राम-मंदिर निर्माण के लिए, गौशाला के लिए, विश्वकर्मा दिवस पर व और भी अन्य अवसरों पर दिल खोलकर चंदा दिया गया। जो दोनों में आधा-आधा बंट गया।
शहर में 14 अप्रैल को भारतरत्न बाबासाहब डॉ. भीमराव अम्बेडकर का जन्मोत्सव पर भव्य आयोजन किया जाना प्रस्तावित था। डॉ. भीमराव अम्बेडकर युवा संगठन के पदाधिकारी जो भोलाराम के दोस्त थे। वे चंदा लेने दुकान पर आ गए। दुकान पर होशियार सिंह बैठा था। उसने चंदा देने से मना कर दिया। डॉ. भीमराव अम्बेडकर युवा संगठन के पदाधिकारी राजेंद्र ने अपने मित्र भोलाराम के मोबाइल पर फोन करके कहा कि दुकान पर आए थे चंदा लेने, तेरे पार्टनर ने चंदा देने से मना कर दिया। भोलाराम बोला पार्टनर से मेरी बात कराओ। भोलाराम ने कहा कि भाई इनको चंदा दे। होशियार सिंह बोला कितना देना है? प्रत्युत्तर में भोलाराम कहा एक हजार रुपए। होशियार सिंह ने दो पांच-पांच सौ नोट डॉ भीमराव अम्बेडकर युवा संगठन के पदाधिकारियों को थमा दिए।
महिने के अंत में हिसाब-किताब हुआ तो होशियार सिंह ने चंदे वाले एक हजार रुपए भोलाराम की ओर निकाल दिए। भोलाराम ने तलबी की तो कहा गया कि हमने तो देने से मना कर दिया था, तेरे ही कहने से दिए हैं। भुगत भी तू ही। भोलाराम ने कहा कि तंने आज तक कितनी बार चंदा दिया। जो दोनों में आधा-आधा बंट गया। इस बार का चंदा दोनों में क्यों नहीं बंटा? ये हमारा नहीं आपका कार्यक्रम है। भोलाराम अपना भोलापन छोड़ते हुए कहने लगा कि हर महीने जागरण, लंगर व भंडारों के नाम पर चंदा दिया जाता है वो दोनों में कैसे बंटता है? होशियार सिंह अपनी होशियारी दिखाता हुआ कहने लगा कि वह तो धार्मिक आयोजन हैं। अपने दोनों के ही हैं। यह केवल आपका है।
भोलाराम को अपने मित्र व डॉ. भीमराव अम्बेडकर युवा संगठन के पदाधिकारी राजेंद्र से जातिवाद के संदर्भ में होने वाली बातें आजतक झूठ प्रतीत होती थी। आज उसे सच लगने लगी। बात हजार-पांच सो रुपए की नहीं थी। बात थी भावना की। होशियार सिंह को होशियार करते हुए भोलाराम ने कहा कि भविष्य में किसी भी जागरण, कीर्तन, लंगर व भंडारे का चंदा तू अपना देना। देना होगा तो मैं अपना दूंगा। इस घटना ने भोलाराम को अपना भोलापन त्यागने को मजबूर होना पड़ा। अब कारबार की गतिविधियों में एक्टिव मोड में रहकर भूमिका निभाने लगा। अनेक अवसर और भी आए। जिन्होंने दोनों की साझेदारी का गणित बिगाड़ दिया। दोनों कभी लड़े तो नहीं लेकिन हालत पूर्ववत भी नहीं रहे।
अंत में दोनों ने अलग होने का निर्णय लिया। साझेदारी खत्म करने के लिए हिसाब-किताब करने बैठ गए। होशियार सिंह इस झमेले के बहाने भोलाराम को कारोबार से निकाल कर अकेला काम करना चाहता था। होशियार सिंह ने हिसाब-किताब करने में होशियारी के तमाम दाव-पेच लड़ा दिए। उसे पता है कि दुकानदारी भोलाराम के बस का काम नहीं है। वह इस व्यवसाय के संदर्भ में बारीकियों से वाकिफ नहीं है। होशियार सिंह मान कर चल रहा था कि दुकान उसी के पास रहेगी। नहीं भी रही तो भोलाराम से चलेगी नहीं। दुकान में रखा करोड़ों का सामान बाद में ओने-पौने दाम पर मैं ही खरीद लूंगा। उसने पूरा चक्रव्यूह रच कर भोलाराम को हलाल करने का मन बना लिया।
हिसाब-किताब हुआ। भोलाराम ने देखा कि जो हिसाब हुआ है उसके मुताबिक दुकान रखने में लाभ है। तो उसने दुकान स्वयं ही रख ली। भोलाराम ने पैंतरा बदला। कहने लगा अपना हिसाब-किताब दुकान का हुआ है। यारी-दोस्ती पहले की तरह ही है। गैर मत समझना। हर दुख-सुख में एक-दूसरे का सहयोग पूर्ववत ही करेंगे। यूं कहकर हिसाब-किताब करने वाली बैठक बर्खास्त हो गई। भोलाराम ने हिसाब-किताब के मुताबिक देय राशि का चैक होशियार सिंह को थमा दिया।
भोलाराम ने फ्लैक्स बनवाकर दुकान के बाहर व अंदर लिखवा दिए। जिन पर “उधार बंद” लिखा था। कोई भी खरीदार आए उसे सामान की खरीद की कीमत और दुकान का रोज़मर्रा का खर्च निकाल कर दे देता। होशियार सिंह ने भी पूरी ऑटो-मार्केट में भोलाराम का बड़ा दुष्प्रचार किया। दुकान चलाना बस की बात नहीं फिर भी दुकान रख ली। ऊब सामान ओने-पौने भाव निकाल रहा है। बुराई के साथ-साथ होशियार सिंह अपने पुराने पार्टनर भोलाराम का निशुल्क विज्ञापन भी कर रहा था। परिणामस्वरूप पूरी ऑटो-मार्केट भोलाराम की ग्राहक बन गई। भोलाराम ने दो दिन की सेल का जायजा लिया। दोनों दिन की सेल एक लाख रुपए से अधिक की हुई। भोलाराम को गुरुमन्त्र मिल गया। उसने दुकान बंद करने का इरादा छोड़ दिया।
उधार बंद और कम मुनाफे में सामान की बिक्री जारी रखी। आज वह भोलाराम से सेठ भोलाराम हो गया। होशियार सिंह ने बाद में भी अनेक पासे फैंके। लेकिन भोलाराम ने अब सदा के लिए भोलापन त्याग दिया।
विनोद सिल्ला
771/14, गीता कॉलोनी,
डांगरा रोड़, टोहाना
जिला फतेहाबाद (हरियाणा) 125120
संपर्क 9728398500
vkshilla@gmail.com