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7 Dec 2023 · 1 min read

भोर

तम के पहरे गल गए, हुई देखलो भोर।
कौओं की आवाज भी, लगती नहीं कठोर।।

दिवस नया फिर हो चला, मुर्गों ने दी बांग।
पथ पर जीवन चल पड़ा ,पहिए करते रोर।।

इस जीवन उद्यान में,भाँति-भाँति के फूल।
हवा विपद की चल पड़ी,करते हुए झकोर।।

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