भोजपुरी ग़ज़ल
पाँखि कतरડ न बाबू उड़े दડ तनी।
सुख के, जिनगी में मोती जड़े दડ तनी।
दाना-पानी जुटावे के अइलीं सहर-
भागि से हमके अपने लड़े दડ तनी।
ई उमिरिया बिता देहलीं परदेस में-
लोग-लइकन से अपने जुड़े दડ तनी।
बानी झउसा गइल डाह के आग में-
धार नेहिया के एहरों मुड़े दડ तनी।
जोरि के हाथ “कृष्णा” कहें लें इहे-
बाति-बोली में मिसरी पड़े दડ तनी।
कृष्ण कुमार श्रीवास्तव “कृष्णा”
हाटा,कुशीनगर