भोजपुरी ग़ज़ल
हमार गाँव
गाँव के बाति हमरे निराला हवे।
जहवाँ संगहि में मसजिद- सिवाला हवे।
भात, रोटी आ चटनी में अमरित भरल-
इहवाँ अनमोल हर इक निवाला हवे।
नेह महकल करेला इहाँ ए तरह-
जइसे सिलवट पे पीसल मसाला हवे।
साँच बातिन के गठरी रहेला भरल-
मन मे कउनो ना चोरी घोटाला हवे।
आम, बरगद आ पीपर बा पावन बहुत-
धूर माटी हमन के दुसाला हवे।
डाह बाटे न केहू से कउनो सुनीं-
गाँव व्यवहार के फूल माला हवे।
बाटे “कृष्णा” ना मन में अन्हरिया इहाँ-
सीख पुरखन के दीहल उजाला हवे।
@स्वरचित
कृष्णा श्रीवास्तव
हाटा,कुशीनगर,
उत्तर प्रदेश