भोजपुरी मुक्तक
सनसन सनसन पुरुआ डोले, रिमझिम बरसे सावन।
हरियाली आच्छादित धरती, लागे सुंदर पावन।
याद सतावे हरपल तहरो, मनवा नाहीं लागे-
घर आजा परदेसी बालम, मौसम बा मनभावन।
बात न तनिको बूझत बाड़ऽ, के तहके समुझाई।
माटी के तन माटी होई, अंत समय जब आई।
भाई-बंधु, बाप-महतारी, छोड़ छाड़ सब अहिजे-
माया में अझुराइल सुगना, लौट घरे चल जाई।
पावस के मौसम मनभावन, झमझम बरसे सावन।
छटा निरेखीं इन्द्रधनुष के, आसमान बा पावन।
करिआ बदरा चमके बिजुरी, सिहरे बदन समूचा-
दृश्य मनोरम जल उपवन सब,लागे बहुत लुभावन।
(स्वरचित मौलिक)
#सन्तोष_कुमार_विश्वकर्मा_सूर्य’
तुर्कपट्टी, देवरिया, (उ.प्र.)
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