भूल ये तुम्हारी
कुण्ठा में गुजार दिया, तुमने सफ़र कहीं।
भूल ये तुम्हारी कहीं, तुम्हें सालती रहे।।
मन की निराशा तेरे, मन में रहे जो कहीं।
रासते में बाधा कहीं, ये न डालती रहे।।
छोड़ दो ये राह अभी, देर न हो जाये कहीं।
मन में उजालों वाली, रात जागती रहे।।
तोड़े से भी टूटे नहीं, हौसले तुम्हारे कभी।
दूर से निराशा वाली, बात ताकती रहे।।