भूले जो अपना मान क्या करते
भूले जो अपना मान क्या करते
उम्र का है ढलान क्या करते
असली नकली नहीं समझ आया
बन्द कर दी दुकान क्या करते
बारहा वक़्त ज़ख़्म देता है
हम मिटा कर निशान क्या करते
स्वार्थ में डूबे हुए हैं जो इतना
काम कोई महान क्या करते
बेहयाई की जब चली है हवा
तान पर्दे के थान क्या करते
याद की लौ जलाई दिल में है
और हम दीपदान क्या करते
टूट घर ही गया है जब अपना
फिर बनाकर मकान क्या करते
दिल से दिल ‘अर्चना’ जुड़े थे जब
कुंडली का मिलान क्या करते
डॉ अर्चना गुप्ता