” भूलने में उसे तो ज़माने लगे “
ग़ज़ल
बेवफ़ा ख़्वाब अब हैं सताने लगे !
याद सोई हुई फ़िर जगाने लगे !!
राह चुन कर नई मंजिलें जब चुनी !
जो सखा हैं हमें आजमाने लगे !!
जब सगा बन कुरेदे कभी दिल यहाँ !
ज़ख्म सारे मेरे मुस्कराने लगे !!
हो फ़तह दूर जब भी खड़ी सामने !
ये थके से कदम भी बहाने लगे !!
पास कोई खड़ा जब धड़क को सुने !
तीर साधे नज़र जो निशाने लगे !!
आग किसने लगाई हुआ तय नहीं !
पर सजा लोग जी भर सुनाने लगे !!
घूँट अपमान के जो “बिरज” पा गया !
भूलने में उसे तो ज़माने लगे !!
स्वरचित / रचियता :
बृज व्यास
शाजापुर ( मध्य प्रदेश )