भूरा और कालू
5 एकड़ भूमि का काश्तकार (किसान) रामू का एक बैल गलाघोटू रोग से चल बसा जिससे उसके तंदुरुस्त बैलों की जोड़ी बिखर गई। इससे रामू को बड़ा दुख हुआ। जिन बैलों को उसने बड़े प्रेम से पाला था। जो उसके जीवन के आधार थे। उसके खेतों को जोतने वाले उसके बेल उसकी टिटकार लगाने से पूर्व ही रामू के संकेतों को समझ जाते थे। जो डेढ़ टन वजन खींच कर ले जाते थे। गहराई तक हल जोतने के बाद भी उनके कदम कभी रुकते नहीं थे। ऐसे बैलों की जोड़ी के टूटने से रामू को बड़ी निराशा हुई। रामू का खेती बाड़ी काम ठप पड़ गया था वह ऐसे बेल की खोज करने लगा जिससे उसकी बैलों की जोड़ी वापस पहले की तरह बन जाए।
रतनपुर में पशुओं का साप्ताहिक बाजार लगता है रामू भी बेल की खोज में गया। वहाँ सैकड़ों बेल बिक्री के लिए आए थे। रामू उनमें से अपने बचे हुए बैल की जोड़ी के हिसाब से एक बेल की खोज करने लगा। उसने वहाँ के लगभग सभी बैलो को देख लिया। पर उसे वैसा बेल दिखाई नहीं दिया। किसी के सिंग मेल नहीं खाते थे। तो किसी की ऊँचाई लंबाई मेल न खाती थी। किसी में इतनी फुर्ती नहीं थी कि वह उसके बेल के बराबर चल सके। पूरे बाजार में घूम फिर कर थका हारा रामू जब घर की ओर लौटने लगा तभी उसकी नजर एक काले रंग के बेल और पड़ी। यह उसके बेल के बिल्कुल विपरीत रंग का था किंतु फिर भी रामू को अपनी ओर आकर्षित कर रहा था। दिखने में बिल्कुल उसके बेल जैसा ही था बस केवल रंग का अंतर था रामू ने उसको सभी प्रकार से परखना प्रारंभ किया। आश्चर्य की बात है कि यह रामू की सभी कसौटी पर खरा उतरा। आखिरकार रामू ने उसे खरीदने का निश्चय कर लिया। मोल भाव करते-करते साढ़े दस हजार रुपए पर बात पक्की हुई और रामू उसे अपने घर ले आया।
रामू के घर नए बैल का विधि विधान के साथ पूजा पाठ तथा खूब स्वागत सत्कार हुआ। रामू की नन्ही बिटिया ने उसका काला रंग देखकर उसका नाम कालू रखने का निर्णय लिया। तथा दूसरे बेल को उसके गोरे रंग के कारण भूरा कहा जाने लगा। इस प्रकार नई जोड़ी का नाम भूरा और कालू रखा गया। यह तो सत्य प्रमाणित है कि मनुष्य की तरह जानवरों में भी अपने पद और वरिष्ठता का अभिमान होता है। क्योंकि भूरा वरिष्ठ था और कालू कनिष्ठ, भूरा पुराना था कालू नया आया हुआ था। अतः भूरा ने कालू पर अपनी छाप जमाना प्रारंभ कर दिया। वह कालू को बात बात पर घुड़कियाँ देने लगा। खाने-पीने मैं कालू से पहले अपना अधिकार जताता था। बैलगाड़ी में कालू से आगे रहता। खेत की जुताई मैं भी वह आगे रहता। यदि कभी कभार कालू का कदम उससे आगे बढ़ जाता तो वह तुरंत कालू को धमकाने लग जाता। अब बैलों की बात इंसान को कब समझ में आती। रामू के सहकर्मी सभी किसान कालू को भूरा के मुकाबले कमजोर मानने लगे। किंतु रामू को बैलों की अच्छी पहचान थी वह उनके व्यवहारों से परिचित था। अतः कालू के प्रति उसके प्रेम में कोई अंतर नहीं आया। वह कालू के विनम्र व्यवहार और सच्चरित्र को जानता था। कालू भूरा के अपने प्रति कठोर व्यवहार का भी सम्मान करता था। सामर्थ्यवान होने के बाद भी वह भूरा के व्यवहार का प्रत्युत्तर नहीं देता था।
रामू के खेत पहाड़ों से सटे हुए जंगलों के पास थे इस कारण कभी कभार वहाँ पर हिंसक पशु आ जाया करते थे। एक दिन रामू ने खेत की जुताई के बाद दोपहर को बेलों को पानी सानी पिलाकर अलग-अलग थोड़ी दूरी पर बांध दिया। प्रतिदिन इस समय तक उसकी पत्नी भोजन लेकर आ जाया करती थी। और यह समय इसके भोजन का हुआ करता था। वह खेत की मेड़ पर सटे आम के वृक्ष के नीचे अपने गमछे का तकिया बनाकर सो गया और पत्नी का इन्तजार करने लगा उसे जोरों की भूख लगी थी। काफी समय हो गया उसकी पत्नी नहीं आई। क्योंकि त्योहार का दिन था और घर में कार्य अत्यधिक होने के कारण उसकी पत्नी को भोजन लेकर आने का समय ना मिला होगा। रामू ने यह सब सोचकर स्वयं ही घर जाने का निश्चय किया। उसने सोचा अभी जाकर भोजन करके वापस आ जाऊँगा। और वह घर की ओर चल दिया।
भूरा और काला अपना चारा खाने में व्यस्त थे। आसपास के किसान भी दूर-दूर तक दिखाई नहीं दे रहे थे संभवत कुछ त्योहार के कारण खेत पर आए भी ना हो। चारों ओर सन्नाटा व्याप्त था। कुछ बंदर आम के वृक्ष पर उछल कूद कर रहे थे। गिलहरीयाँ दानों की तलाश में इधर-उधर घूम फिर रही थी। दो टिटहरी खेत में अपने अंडों की रक्षा कर रही थी। आस पास कोई भी पक्षी या कोई जीव जाता तो वे उन पर टूट पड़ती। तीतर बटेर आदि पक्षियों की सामान्य ध्वनि सुनाई दे रही थी। सब कुछ सामान ऐसा प्रतीत हो रहा था कि अचानक से सभी के व्यवहारों में परिवर्तन होने लगा ध्वनिया तेज होने लगी। बंदर भी असामान्य ढंग से उछल कूद करने लगे टिटहरी जोर-जोर से चिल्लाने लगी और खेतों के चक्कर काटने लगी। सहसा अचानक एक भारी-भरकम तेंदुआ पहाड़ से नीचे उतर आया। उसे देख दोनों बेल डर गए। दोनों को अपने प्राण संकट में नजर आने लगे। बंधे होने के कारण बेल कुछ कर नहीं पा रहे थे। तेंदुए के लिए बैलों को अपना शिकार बनाने का अच्छा अवसर था। कुछ समय बैलों की ओर देखने के पश्चात वह भूरा की ओर दौड़ा भूरा उसे अपने सिंगों से रोकने का प्रयास करने लगा। उधर कालू ने अपने मित्र को संकट में देखा तो वह अपने बंधन से मुक्त होकर उसकी सहायता के लिए जोर लगाने लगा। उधर भूरा अपने सिंग तेंदुए के प्रहार को रोकते रोकते थकने लगा था। अब उसकी हिम्मत टूटने लगी थी। तभी कालू भूरा से कहता है। मित्र हार मत मानना चिंता मत करो मैं आ रहा हूँ। और वह अपनी रस्सी को एक जोर का झटका मारता है। जिससे रस्सी टूट जाती है। वह पूरी फुर्ती के साथ भूरा की मदद के लिए दौड़ता है। और तेंदुए से भिड़ जाता है काफी समय तक दोनों में जिंदगी का महा द्वंद चलता रहता है। अंत में तेंदुए को हार मान कर वहाँ से भागना पड़ता है। इस द्वंद्व में कालू को चोट लग जाती है। पर वह अपने मित्र भूरा के प्राण बचाने में सफल होता है।
भूरा ने देखा कि कालू ने अपने प्राण को दाव पर लगाकर आज उसकी जान बचाई है ।उसकी आँखों में कालू के प्रति अपार प्रेम और श्रद्धा के भाव उमर पढ़ते हैं। अपनी भिगी आँखों से वह कालू से अपने दुर्व्यवहार के लिए क्षमा मांगता है। वह कालू से पूछता है जब तुम में इतनी सामर्थ्य थी फिर भी तुमने मेरे दुर्व्यवहार का विरोध क्यों नहीं किया। कालू ने कहा मैं तो तुम्हें अपना शत्रु मानता ही नहीं था मैं तो हमेशा तुम्हें अपना मित्र ही मानता था। तुम्हारा तो यह बचपन से घर है मैं तो यहाँ बाद में आया। अत: यहाँ तुम्हारा अधिकार मुझसे ज्यादा था। तुम्हारे उस पद का मैं सम्मान करता हूंँ। यह वचन सुनकर भूरा का हृदय गदगद हो गया। आज से कालू उसका पक्का मित्र बन गया।
जब राम घर से वापस आता है तो सारा मंजर देखकर चकित रह जाता है। कुछ देर निरीक्षण करने के बाद उसे सारा मंजर समझ में आ जाता है। जब दोनों बैलों को एक साथ स्नेह पूर्वक एक दूसरे को चाटते हुए देखता है तो वह भी गदगद हो जाता है। आज उसे यकीन हो गया कि उसके पारखी नजर ने सचमुच एक हीरा चुन लिया है और उसकी बैलों की जोड़ी पहले की तरह ही पूर्ण हो गई। अब चाहे बैलगाड़ी हो या खेत की जुताई दोनों बैलों के पैर एक साथ उठते हैं और एक साथ रुकते हैं अब एक साथ खाते हैं और एक साथ पीते हैं सच्चा मित्र वही होता है जो कठिनाई के समय मित्र के लिए अपने प्राण तक लगाने के लिए पीछे ना हटे।
-विष्णु प्रसाद ‘पाँचोटिया’
ग्राम महूखेड़ा
जिला देवास ( म.प्र.)
दूरभाष 9926021264