*भूमिका (श्री सुंदरलाल जी: लघु महाकाव्य)*
भूमिका (श्री सुंदरलाल जी: लघु महाकाव्य)
सुंदरलाल जी परम प्रेम की प्रतिमूर्ति थे। उनका स्मरण करते हुए पिताजी श्री राम प्रकाश जी सर्राफ आनंद से भर जाते थे। वह भावुक हो जाते थे। सचमुच वह कभी भी सुंदर लाल जी को अपनी चेतना से अलग नहीं कर पाए थे।
परम प्रेम में ऐसा ही होता है। परम प्रेम भी प्रेम ही है किंतु अपनी सर्वोच्चता के साथ यह प्रकट होता है। तब यह भक्ति हो जाता है। आराधना में बदल जाता है। राम प्रकाश जी जब सुंदर लाल जी का स्मरण करते थे, तो वह परम प्रेम की स्थिति में होते थे। परम प्रेम में कोई चाह नहीं होती। कोई इच्छा नहीं। कोई कामना नहीं। वस्तु का आदान-प्रदान या लेनदेन नहीं होता। जिससे प्रेम किया जाता है, उसकी प्रसन्नता में ही प्रेमी परम सुख का अनुभव करता है। प्रेम ही साधन बन जाता है तथा प्रेम ही साध्य में बदल जाता है। तब पाना क्या रह जाता है ? प्रेमी केवल प्रेम लुटाता है तथा उस प्रेमरस में भीग कर आनंद प्राप्त करता रहता है।
राम प्रकाश जी ने सुंदरलाल जी से अनिर्वचनीय अद्भुत प्रेम पाया था। यह प्रेम ऐसा नहीं था कि किसी कामना से किया गया हो। इसलिए यह मरने वाला प्रेम नहीं था। सुंदरलाल जी उस प्रेम-मात्र में आनंदित होते थे तथा राम प्रकाश जी उस प्रेममय व्यवहार का स्मरण करके आनंद प्राप्त करते रहते थे। यह प्रेम अमृत स्वरूप अर्थात कभी न मरने वाला हो जाता है। यह सांसारिक स्वार्थों पर आधारित रिश्तों के नश्वर प्रेम से बहुत ऊॅंची चीज है। ऐसा प्रेम दोनों को पवित्र करता है।
सुंदर लाल जी परम प्रेम में होने के कारण पारस बन गए थे। बालक राम प्रकाश रूपी लोहे को उन्होंने छुआ और फिर वह सोने में बदल गया। यहॉं दोनों का महत्व है। पारस अगर पूर्ण नहीं होगा तो वह लोहे को सोने में नहीं बदल सकता। दूसरी ओर अगर कोई मिट्टी का ही बना है तो उसे पारस कितना भी छुए, वह सोने में नहीं बदलेगा। यानी पात्रता की शर्त दोनों तरफ से है। गुरु मिलकर भी अगर हम में शिष्य की सुपात्रता नहीं हुई तो हम ग्रहण ही नहीं कर सकते हैं। इस तरह दोनों को ही सौभाग्य से गुरु-शिष्य मिलते हैं। लोहे और पारस के सहयोग से ही सोने का निर्माण होता है।
सुंदरलाल जी कोई बहुत प्रसिद्ध व्यक्ति नहीं थे। उनकी पूॅंजी भी ज्यादा नहीं थी। किंतु सुंदरलाल जी की प्रेम की परम निधि को अपनी पूॅंजी मान कर रामप्रकाश जी ने जो सुंदर लाल विद्यालय सुंदरलाल जी के स्मारक के रूप में खोला, उसने सुंदर लाल जी को राम प्रकाश जी के हृदय के साथ-साथ सहस्त्रों हृदयों में सदा-सदा के लिए अमर कर दिया। महापुरुषों की प्रेरणाऍं और महापुरुषों के महान कार्य ऐसे ही संपन्न होते हैं। राम प्रकाश जी ने इस कार्य में सब कुछ खुद ही किया किंतु वह मानते थे और उन्होंने एक बार नहीं बल्कि बीसियों बार समय-समय पर हमसे बातचीत करते हुए कहा था कि सुंदरलाल विद्यालय सुंदरलाल जी की पुण्याई से ही बन पाया है। इसमें मेरा कुछ भी बल नहीं है। मैं सत्य कहता हूॅं कि सुंदरलाल जी और राम प्रकाश जी जैसे लोग संसार में दुर्लभ ही जन्मते हैं।
यह जो पुस्तक लिखी गई है वह यद्यपि एक पारिवारिक कथा है। किंतु इसमें जिन उदात्त विचारों और भावनाओं का वर्णन हुआ है, उसके कारण इसका सार्वजनिक महत्व है। सुंदरलाल जी और राम प्रकाश जी जैसे महापुरुष सबके लिए होते हैं। अतः यह पुस्तक सबके जीवन में परम प्रेम के अमृतमय भावों को आत्मसात करने में सहायक हो सकेगी, ऐसा विश्वास है। जीवन में परम प्रेम का स्पर्श पाते ही हम ईश्वरत्व के निकट चले जाते हैं। महापुरुषों का स्मरण हम में भगवत्ता जगा देता है, यह हम में से बहुतों के अनुभव की चीज है।
यद्यपि पुस्तक में कथा रूप में बहुत कुछ कहा गया है, तथापि कुछ तथ्यों को प्रस्तुत करना अच्छा रहेगा। सुंदरलाल जी का देहावसान 19 जनवरी 1956 ईसवी को हुआ था। उस समय उनकी आयु 80 वर्ष से अधिक रही होगी। राम प्रकाश जी ने सुंदरलाल विद्यालय उनकी स्मृति में बहुत तत्परता से जमीन खरीद कर जुलाई 1956 में आरंभ कर दिया था। उस समय राम प्रकाश जी की आयु उनकी जन्मतिथि 9 अक्टूबर 1925 ईसवी के अनुसार तीस वर्ष पूर्ण हो चुकी थी। राम प्रकाश जी की मृत्यु 26 दिसंबर 2006 को हुई। सुंदरलाल जी के विवाह के कुछ समय पश्चात ही उनकी पत्नी का देहांत हो गया था। सुंदरलाल जी के छोटे भाई विवाह के पश्चात अल्पायु में ही स्वर्ग सिधार गए थे। उनकी विधवा गिंदौड़ी देवी की एकमात्र संतान -कन्या रत्न- रुक्मिणी देवी थीं, जिनका विवाह लाला भिकारी लाल सर्राफ से हुआ था। उनकी ही तीसरी संतान के रूप में राम प्रकाश जी जन्मे थे, जिन्हें मॉं के रूप में सुंदर लाल जी गिंदौड़ी देवी की गोद में पालन-पोषण हेतु अपने घर ले आए थे तथा अपने लिए ताऊ की भूमिका निश्चित कर ली थी।
भिकारी लाल जी की नौ पुत्रियॉं तथा पॉंच पुत्र हुए। चौदह भाई-बहनों के वृहद परिवार से राम प्रकाश जी ने अत्यंत आत्मीयता के साथ निर्वहन किया। उनका सबसे प्रेम था और सब उनसे प्रेम करते थे।
—————————————-
रवि प्रकाश पुत्र श्री राम प्रकाश सर्राफ, बाजार सर्राफा (निकट मिस्टन गंज) रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 9997615451
email raviprakashsarraf@gmail.com