भूमिका या परिणाम?
परिचय में एक व्यापारी हैं जो फिल्मों, साहित्य में रूचि लेते हैं। वो एक स्थानीय फिल्म बना रहे हैं जिसमें खुद ही हीरो बन गये हैं। उन्होंने ये भी एलान किया है कि अभी इस क्रम में अपनी सोची कहानियों पर कुछ फिल्में और करेंगे, जिनमें भी वो खुद ही नायक होंगे। साथ वाले बहुत से चाटुकार खुश हैं कि लंबे समय का आसान रोज़गार मिल गया है। इन्ही व्यापारी सज्जन के शहर में मौकों की तलाश में हज़ारों थिएटर अभिनेता, लेखक, कलाकार घिसटते हुए जीवन व्यतीत कर रहे हैं….लेकिन हर विधा का हीरो तो साहब को खुद बनना है। यहाँ एक और ध्यान देने वाली बात है कि “हर विधा” मतलब ग्लिटर वाली-चमकदार शेखी बघारने लायक विधा, बाकी लाइटिंग, साउंड आदि नहीं।
अपने जीवन की फिल्म में हर कोई मुख्य किरदार में होता है। समय के साथ उसे अपनी क्षमताएं, सीमाएं पता चलती हैं और उनके अनुसार वह जीवन जीता है। किन्ही बातों और अवसर पर उसका नायक का किरदार जँचता है पर बाकी अधिकतर जगहों पर उसका नायक के रोल में आना अटपटा लगता है। अनगिनत समीकरणों से बनी दुनिया में बहुत भीड़ है और प्रकृति सभी को भिन्न-भिन्न बातों में नायक बनने के अवसर देती है। ऐसा हो सकता है कि कोई सामान्य से अधिक जगहों पर नायक बना अच्छा लगे पर अपने मन में ये ग़लतफ़हमी पालकर हर जगह ज़बरदस्ती मुख्य रोल में घुसना गलत है। तो हीरो बनने चले इन व्यापारी सज्जन के साथ होगा ये कि इनकी फिल्म इनके परिचय तक सिमट कर रह जायेगी। हाँ, अगर ये अपने अनुभव और हुनर वाले रचनात्मक काम करते हुए अन्य कामों का ज़िम्मा अपने-अपने क्षेत्र के महारथीयों को देते तो इनका इतना पैसा लगाना सार्थक होता और फिल्म के व्यावसायिक रूप से हिट होने की सम्भावना भी बढ़ जाती।
कुछ दशमलव प्रतिशत में ऐसे प्रयोग चल सकते हैं पर उन अपवादों में वाकई अनेक हुनर होते हैं जो दूसरों को बिना बताये दिख जाते हैं। हर जगह हीरो/हीरोइन बनने के पीछे ये दंभ होता है कि “हमें तो ऊपरवाले ने औरों से अलग ख़ास मिट्टी से बनाया है।” ये सोचने वाले भूल जाते हैं कि ऊपरवाले ने तो सभी को अलग बनाया है। इसी अहंकार के कारण ना जाने कितने महान काम होने से रह जाते हैं। खुद सोचें जब नयी सोच के साथ अपनी-अपनी विधा में दक्ष लोग साथ काम करेंगे तो क्या कमाल कर डालेंगे! बस श्रेय लेने के चक्कर में बात बिगड़ जाती है। अगर आप वाकई किसी नयी जगह श्रेय पाना चाहते हैं तो पहले उसमे उचित समय, मेहनत दें नहीं तो मन ही मन खुद को 56 बातों का हीरो माने लोग तो हर गली में बैठे हैं। काम में अपनी भूमिका को बढ़ाने या मुख्य बनाने के बजाय अगर काम के परिणाम को बेहतर बनाने पर ज़ोर हो तो भविष्य के कामों में अपनेआप व्यक्ति की भूमिका बड़ी होने लगती है।
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