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4 Dec 2021 · 4 min read

भूतपूर्व (हास्य-व्यंग्य)

भूतपूर्व (हास्य-व्यंग्य)
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आप भूतपूर्व के बारे में सोच रहे हैं और मैं वर्तमान के बारे में सोच कर दुखी हो रहा हूँ। मैं वर्तमान पदाधिकारी को देखता हूँ, जो ताजा-ताजा पद पर बैठा है और उसका फूल मालाओं से गला गद्गद हुआ जा रहा है। जय -जयकार के नारे लग रहे हैं । आगे- पीछे दर्जन- भर लोग चमचों का रूप धरे हुए चल रहे हैं । काम कराने वालों की भीड़ लगी हुई है । नेता एक हाथ से आवेदन पत्र लेता है, 15 सेकंड में उस पर चिंतन कर लेता है और अगले 3 सेकंड में उसे अपने अधीनस्थ कर्मचारी को आगे बढ़ा देता है । इस तरह मिनटों में चुटकियाँ बजाते हुए दसियों आवेदन निबटा दिए जाते हैं ।
एक – एक मिनट वर्तमान पदाधिकारी का बहुमूल्य होता है। उसके पास समय कहाँँ है ? कानों में केवल जय- जयकार गूँजता है, हर समय सुनहरे सपनों में खोता है ।
मैं उसका भविष्य देख रहा होता हूँ कि जब पाँच साल के बाद यह पदाधिकारी अपने पद से हटकर भूतपूर्व हो जाएगा, तब इसके जीवन में कितना बड़ा परिवर्तन आएगा ।
कभी आपने विवाह समारोह में शादी से पहले और शादी के बाद विवाह स्थल की स्थिति में परिवर्तन पर गौर किया है ? शादी के समय जिस विवाह स्थल पर शहनाई गूँजती है, फूलों की खुशबू से वातावरण महकता है ,शादी संपन्न हो जाने के बाद वह स्थान उजड़ा- उजड़ा सा नजर आता है। सोफे और कुर्सियाँ रिक्शा – ठेलों पर रखकर वापस जा रही होती हैं । शामियाने हटाए जा रहे होते हैं । लाइट सिस्टम बंद हो चुका होता है । सुनहरी चमकदार झालरें अलविदा लेती हुई नजर आती हैं । पूरे प्रांगण में गेंदे और गुलाब के फूल मुरझाए हुए पड़े होते हैं।
कुछ ऐसा ही दृश्य भूतपूर्व के बंगलों पर होता है। जहाँ पहले एक साथ 100- 100 लोग लाइन में लगे रहते थे और मिलने की प्रतीक्षा करते थे, अब वहाँ सन्नाटा छाया रहता है। भूतपूर्व का समय नहीं बीतता। उसकी समझ में नहीं आता कि क्या करे ?
कई लोग तो जब लंबे समय तक भूतपूर्व हो जाते हैं ,तब उनका जीवन बहुत एकाकी हो जाता है। कोई आ कर नहीं फटकता । जिनके वर्तमान होने की संभावनाएं बिल्कुल समाप्त हो जाती हैं, वे तो दया के पात्र बन जाते हैं । वह गहरे अवसाद में भी अक्सर आ जाते हैं, लेकिन फिर भी वर्तमान बने रहने की चाहत समाप्त नहीं होती ।
कई लोग मंत्री पद से हटने के बाद भी सारी जिंदगी मंत्री जी ही कहलाना पसंद करते हैं ।चमचे भी उनको मंत्री जी कहते हैं। किसी का क्या जाता है ? अगर कोई इसी बात से खुश है तो चलो कह दो ।
यद्यपि सबको पता है कि अब राजा और नवाब नहीं रहे। राजशाही समाप्त हो चुकी है। लेकिन फिर भी जो लोग पुराने राजा महाराजा थे, उनके परिवारजनों को राजा और नवाब कहकर ही बुलाया जा रहा है, क्योंकि वह सब अतीत में ही जीना चाहते हैं। और अपने आप को भूतपूर्व कहलाना पसंद नहीं करते।
व्यक्ति इस तथ्य को स्वीकार नहीं कर पाता कि वह जिस पद पर बैठा है, उस पद से उसे एक दिन उतरना ही है । हमारे देश में जब तक व्यक्ति जिंदा है वह बराबर उसी पद पर बना रहता है । उसकी सारी कोशिश यही होती है कि वह पद न छोड़े । कई लोग बहुत गर्व के साथ यह कहते हैं कि वह इतनी बार विधायक या इतनी बार सांसद रह चुके हैं ।आप इन चीजों को दूसरे अर्थ में देखिए तो इसका मतलब यह होता है कि उन्होंने पद नहीं छोड़ा और पद पाने के लिए निरंतर प्रयत्नशील रहे । बहुत से लोग 85 और 90 साल की उम्र में भी चुनाव लड़ने के लिए तैयार रहते हैं क्योंकि वह पद छोड़ने की मानसिक स्थिति में नहीं होते ।
अधिकारी वर्ग के सामने तो पद से हटते ही समझ लो एक प्रकार की मुर्दानगी छा जाती है । जितने कर्मचारी उनके नीचे काम करते थे ,चापलूसी में सबसे आगे थे, रोजाना सुबह से शाम तक उनके आदेशों का पालन करना ही उनका धर्म था , वह पद से हटते ही न जाने कहाँ चले जाते हैं और दोबारा दिखाई नहीं देते । अधिकारी बेचारा सोचता है कि कम से कम जो चार- पाँच लोग उसके बहुत करीबी थे ,वह तो आकर उससे मिलते रहेंगे। लेकिन उनको फोन करने के बाद भी वह लोग फोन नहीं उठाते और घंटी बजती रहती है । पद से हटना -भगवान यह स्थिति किसी को न दे । पद दे यह तो ठीक है लेकिन पद देने के बाद वापस न ले । लेकिन यह संभव नहीं है।
. पद नाशवान है । जैसे शरीर समाप्त हो जाता है और केवल आत्मा बच जाती है, ठीक उसी प्रकार व्यक्ति पद पर आता है और पद से हट जाता है। केवल उसकी लालसा जीवित रहती हैं । पद के साथ भूतपूर्व लगाना उसके लिए संभव नहीं हो पाता । व्यक्ति के लिए बड़ा कठिन होता है, अपने पद के साथ भूतपूर्व शब्द जोड़ना।
बहुत से लोग अपने नाम के आगे “भूतपूर्व” बहुत छोटा करके लिखते हैं। इससे स्पष्ट हो जाता है कि उन्हें अपने पद के साथ भूतपूर्व जोड़ने में बहुत तकलीफ हो रही होगी । कुछ लोग भूतपूर्व के स्थान पर और भी छोटा करके केवल ” पूर्व ” ही लिखते हैं । कुछ लोग “पूर्व “भी न लिखकर केवल ” पू.” लिख देते हैं। कुछ लोग उसको भी इतना छोटा लिखते हैं कि जब तक चश्मा लगाकर न देखो ,वह पढ़ने में नहीं आता। भूतपूर्व लोगों की हार्दिक इच्छा भी यही होती है कि उनके पद के साथ जुड़ा हुआ “भूतपूर्व “शब्द किसी को नजर न आए और वह हमेशा वर्तमान पदाधिकारी ही कहलाए जाते रहें।
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लेखक : रवि प्रकाश, बाजार सर्राफा,
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99 97 61 5451

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