भूख
भूख
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ये
भूख
कराती
अपराध
धर्म-अधर्म
बनता दनुज
है निकृष्ट मनुज।
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है
ज्ञान
अथाह
क्षुधापूर्ति
नहीं संभव
बिना परिश्रम
करो मिटेंगे भ्रम।
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ना
भूख
देखती
दिन-रात
लगती सदा
है अनोखी अदा
देखना तो इसकी।
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है
छाया
संकट
महामारी
काम चौपट
भूखे बिलखते
नहीं सोते हैं बच्चे।
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हैं
रूप
विविध
तामसिक
तन मन धन
इसकी पूर्ति में
अंधा बहरा मन।
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जो
दिखे
क्षुधित
हो मुदित
देना भोजन
यही सद्कर्म
है सर्वोपरि धर्म।
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हाँ
अच्छी
पुस्तकें
मानसिक
क्षुधा हरती
देती वरदान
बढ़े प्रचुर ज्ञान।
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ये
भूख
पेट की
करे त्रस्त
रखती व्यस्त
सदा करे काम
नहीं करे विश्राम।
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ये
भूख
लगती
बराबर
राजा-रंक को
नहीं करे भेद
मिटाती मनभेद।
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डा० भारती वर्मा बौड़ाई