भूख
‘भू’ से धरती, ‘ख’ से आकाश,
इसका विस्तार सम्पूर्ण संसार,
जब भूख जगे जठराग्नि रूप,
बुभुक्षा, पिपासा औ लिप्सा स्वरूप,
तब श्रम-साधन का उपयोग बढ़े,
कृषि यंत्र लगे, उत्पाद बढ़े,
सेवा-क्षेत्र का विस्तार बढ़े,
होटल, रेस्त्रां, बाजार सजे।
जब भूख जगे अनुराग रूप,
करुणा, प्रेम औ दया स्वरूप,
तब प्रीत बढ़े, मनमीत मिले,
दिल का दिल से संबंध बने,
परिवार बने, समुदाय बढ़े,
दिक्-दिगांतर में संचार बढ़े।
जब भूख जगे सत्-ज्ञान रूप,
विद्या, बुद्धि औ मति स्वरूप,
तब ज्ञान बढ़े, विज्ञान बढ़े,
सभ्यता, संस्कृति का मान बढ़े,
विश्वगुरु रूप सम्मान बढ़े,
चहुंँओर हमें यशगान मिले।
मौलिक व स्वरचित
©® श्री रमण
बेगूसराय, बिहार