भूख
अचानक आफिस में काम करते हुए फ़ाइल से नजरें उठी तो देखा सारे सहकर्मी या तो जा चुके थेऔर जो दो चार बचे थे वो भी जाने की तैयारी कर चुके थे। मैंने सामने दीवार पर टंगी घड़ी पर नज़र दौड़ाई सात बजने को थे। मैंने भी फ़ाइल को बंद कर दराज में रखा और चलने के लिए अपना बैग उठा लिया। थके कदमों से चलते हुए आफिस की पार्किंग में पहुंच कर मोटरसाइकिल स्टार्ट की और घर की और चल दिया। घर के रास्ते में पड़ने वाले भोजनालय से रात के लिए टिफिन पैक कराना मेरा रोज का काम था। भोजनालय के काउंटर पर बैठे मालिक ने मुझे देखते ही मुस्करा कर नमस्ते की और मेरा टिफिन मुझे पकड़ाने के लिए मेरी और बढ़ा। मैंने नमस्ते का उत्तर देते हुए टिफिन लिया और पुनः घर की और चल दिया। मेरा घर यहां से ज्यादा दूर नही था फिर भी थकान की वजह से दूरी ज्यादा लग रही थी। जैसे ही मैं घर के सामने मोटरसाइकिल से उतरा मुझे बेहद कमजोर सी आवाज़ सुनाई दी। बाबू जी दो दिन से भूखा हूँ कुछ खाने को मिल जाता तो… कहते हुए उस वृद्ध की आवाज़ लडख़ड़ा गई और धीर से वहीं फर्श पर बैठ गया। उसकी आँखों में कुछ पा जाने की ललक को मैंने महसूस किया। मैंने तुरंत मोटरसाइकिल पर टंगा टिफिन उतार कर उस वृद्ध को दिया। बिना देर किए मैंने दरवाजे का ताला खोला और लगभग दौड़ता हुआ अंदर गया और पानी की बोतल हाथ में लिए वापस आया तो देखा वो वृद्ध हाथ में दो रोटी और सब्जी लिए मेरी प्रतीक्षा कर रहा था उसने बड़ी विन्रमता के साथ टिफिन मेरी और बढ़ा दिया। मैंने आज एक भूखे इंसान की ईमानदारी को इतने करीब से देखा तो उस वृद्ध के लिए एक अलग तरह का सम्मान महसूस किया साथ ही अन्न का भी। मैंने हाथ में पकड़ी पानी की बोतल वृद्ध को पकड़ाकर एक नए उत्साह के साथ घर के अंदर प्रवेश किया एक बार पुनः वृद्ध का चेहरा देखा जिस पर सन्तुष्ट होने के भाव दमक रहे थे। मुझे भी आज अजीब तरह के सुख का अनुभव हुआ।
वीर कुमार जैन
25 जून 2021