भूख
सर पर छत नही, रोड़ साइड में अक्सर सोते है,
कभी पेड़ के नीचे, कभी फुटपाथ पे ज़िन्दगी जीते है..
ये कैसा है खुदा का हिसाब, समझ में नहीं आता है,
मैं बोल नहीं सकता, माँ कमा नहीं सकती क्या खुदा को नज़र नही आता है ?
क्यों उसने छोड़ दिया हमें किसी और के सहारे ,
जब भूख दी पेट दिया तो क्यों नही दिए कमाने वाले?
इस दुनिया में सब उसकी मर्जी से चलता है,
तो क्यों कोई बच्चा, भूखा ही सड़कों पे चलता है?
माँ भी हमें भूखा देख रोती है पूरा दिन,
कुछ न कर पाने का अफ़सोस और लाचारी है बस मुमकिन..
क्या बड़ा होकर मैं अपनी ज़िंदगी संवार पाऊंगा,
क्या बिना पढ़े लिखे सड़कों पे रहकर माँ को सुख दे पाऊंगा?
पता है आज ये सवाल बार बार मन में क्यों आ रहा है?
क्योंकि रोटी के लिए कोई अमीर मेरी माँ को कुत्ते की तरह दुत्कार रहा है।