*भूख जीवन का सबसे बड़ा सच है*
भूख न जाने नैतिकता को।
भोजन केवल नैतिकता है।
अन्न मिले तो आस्तिकता है।
भूख न जाने धार्मिकता को।
भूखा केवल अन्न जानता।
बिन भोजन के उदर तड़पता।
रोटी रोटी कहता चलता।
पेट दिखाता भीख माँगता।
कुत्तों जैसी हालत होती।
दर दर की वह ठोकर खाता।
बिन रोटी आँसू टपकाता।
भूख घास का बीजक बोती।
रोती हरदम भूखी ममता।
अब विलुप्त धरती से समता।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।