भूख ,गरीबी छोड़कर , मजहब पर नित जंग ।
भूख ,गरीबी छोड़कर , मजहब पर नित जंग ।
दुश्मन भी खुश हो रहा , देख हमारे ढंग ।।
देख हमारे ढंग , सियासत बढ़ती रहती ।
बटे रहे सब लोग , सोच यह चलती रहती ।
नफरत का बाजार , दिलों के बहुत करीबी ।
मजहब पर नित जंग , छोड़कर भूख गरीबी।।
सतीश पाण्डेय