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30 Oct 2023 · 1 min read

“भूख के बुखार से!”

“भूख के बुखार से!”

1)दिन-भर भूख से तड़पता बच्चा,
रात को रोते-रोते सो गया।

शायद सपनों में मिल जाए रोटी…
इसलिए सपनों में खो गया।

2)माँ की गोद में सोया,
नन्हा सा रूप भूख का।

निस्तेज पीला चेहरा, स्वरूप जिंदगी की धूप का।

3)तप रहा बच्चा,
भूख के बुखार से।

शायद जा रहा दूर,
पतझड़ की बहार से।

4)छलनी मां का कलेजा,
बच्चे की हालत देखकर।

खुद की बेबसी,
न मिलने वाली राहत देखकर।

5)अचानक दर्द से तड़पते बच्चे ने आँखें खोली।

उसकी भोली आँखें शायद माँ से कुछ बोली।

6)फिर वो आँखें हमेशा के लिए,
बेजान हो गई।

मां की तो सारी दुनिया,
वीरान हो गई।

7)मुरझा गया खिलता फूल,
जीवन-धूप के प्रहार से।

तड़पते-तड़पते गई नन्ही-जान,
“भूख के बुखार से!”

प्रिया प्रिंसेस पवाँर
स्वरचित,मौलिक
सर्वाधिकार सुरक्षित
द्वारका मोड़,
नई दिल्ली-78
( मेरी कई बार प्रकाशित तथा पुरस्कृत रचना)

3 Likes · 2 Comments · 106 Views
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