भुला बैठे हैं अब ,तक़दीर के ज़ालिम थपेड़ों को,
भुला बैठे हैं अब ,तक़दीर के ज़ालिम थपेड़ों को,
मगर मसरूफ़ हैं फिर ‘नील’ की क़िस्मत बनाने में ।
✍️नील रूहानी
भुला बैठे हैं अब ,तक़दीर के ज़ालिम थपेड़ों को,
मगर मसरूफ़ हैं फिर ‘नील’ की क़िस्मत बनाने में ।
✍️नील रूहानी