भीख
गांव में एक करीबी रिश्तेदार के यहां शादी थी, इसलिए शर्मा जी को एक लंबे समय के बाद अपने गांव जाना पड़ रहा था। इसलिए उन्होंने सोचा बच्चों और धर्मपत्नी को भी ले चलूं गांव से उनका परिचय भी हो जाएगा लेकिन उनकी ये सोच बस सोचने तक ही सीमित रह गई जब मिसेज शर्मा ने गांव जाने के लिए मना ही कर दिया, बच्चे तैयार हो गए क्योंकि उन्हें गांव में सैर सपाटा करने जो मिलेगा।
शादी की तारीख को वो सब सुबह जल्दी उठकर तैयार होकर अपने कार से गांव जाने के लिए रवाना हुए रास्ते में ही मिसेज शर्मा का मायका पड़ता था तो उन्हें वहां ड्रॉप करके शर्मा जी और बच्चे निकल पड़े गांव की ओर।
करीब एक डेढ़ घंटे की ड्राइव के बाद उनका पुश्तैनी गांव आ गया और वो सब इसके सारे नजारों को देखते हुए अपने रिश्तेदार के घर तक पहुंच गए। कुछ भी तो नहीं बदला था वहां पर न संस्कृति और न ही वहां के लोग, बस अगर कुछ बदला था तो बिजली की सुविधा आ गई थी, थोड़ी सड़क अच्छी बन गई थी और कुछ पक्के मकान बन गए थे।
तय समय पर बारात आई और उनके स्वागत के बाद भोजन का कार्यक्रम था तो सभी भोजन करने बैठे, तभी शर्मा जी ने देखा एक छोटी सी बच्ची( जो लगभग 7 साल की होगी) अपने हाथ में अपने से थोड़ी छोटी एक बच्ची का हाथ पकड़ कर बेचारी फटेहाल पुराने कपड़ों में खाना खाने आई थी। उसकी हालत देखकर उन्हें सहसा करुणा आ गई और वो अपने रिश्तेदार से पूछ बैठा ये कौन है?
उन्होंने बताया कि ये कमली है इसके मां बाप पिछले साल कोरोना में गुजर गए और अब इनका कोई नहीं है तो गांव के घरों में खाना मांगकर खाते हैं और अपने टूटे पुराने मकान में रहते हैं। सुनकर शर्मा जी ईश्वर के इस अन्याय पर स्तब्ध हो गए और पूछा कि क्या इनका और कोई नहीं है अब? नहीं में जवाब मिलने पर उन्होंने मन ही मन कुछ निश्चय किया।
दूसरे दिन चूंकि शादी समाप्त हो चुकी थी तो उन्होंने रिश्तेदारों से विदा ली और मुखिया जी से पूछा कि क्या मैं कमली और उसकी बहन को अपने साथ शहर ले जाकर उन्हें किसी बाल आश्रम में डाल सकता हूं जहां उन्हें अच्छी शिक्षा और परवरिश दोनों मिलेगी। मुखिया जी और गांव वालों ने शर्मा जी के विचारों की प्रशंसा करते हुए एक स्वर में सहमति दे दी और वे उन दोनों मासूम बच्चों को साथ ले आए।
उन दोनों मासूमों को शहर के बाल आश्रम में दाखिल कराकर जैसे ही शर्मा जी अपने घर पहुंचे तो बच्चों ने अपनी मम्मी को बताया कि पापा ने कितना नेक काम किया है। सुनकर मिसेज शर्मा के आंसू छलक आए और वो एक ही वाक्य बोली मुझे गर्व है आप पर।
इस पर शर्मा जी ने कहा कि ईश्वर ने हम जैसों को अगर सक्षम बनाया है तो हमारा भी फर्ज है कि जरूरतमंद की सही ढंग से सहायता करें, लेकिन भीख देकर नहीं बल्कि उसके लिए उस समय जो सहायता उचित हो और जिससे उसका जीवन सुधर सके ऐसी सहायता करनी चाहिए। खासकर ऐसे अनाथ बच्चों को भीख के बजाय ऐसे सहायता की जरूरत होती है जिससे उन्हें जीवन भर भीख न मांगनी पड़े और वे स्वयं अपने पैरों पर खड़े हो सकें।
✍️ मुकेश कुमार सोनकर”सोनकर जी”
रायपुर छत्तीसगढ़ मो.नं.9827597473