भींगत हैं आँगन मारों
लोकगीत
आ जाओं हम तुम खुशियों का कर हैं न्यौता प्यारों,
भींगत हैं आँगन मारों,ओ भावी जी सुन लो बात हमारों,|
तुम आ गई सो, हो गयो उजयारों,
ओ भावी भींगत हैं आँगन मारों,
आओं हम तुम बात करें ,मन भारो ,
ओ भावी सुन लो बात हमारों,
कढ़ जाये मन को दुवेश हमारों,
करलों उपाये ऐसो भारों,
लगे हमें प्यारों और लगे तुम्हे प्यारो ,
ओ भावी कर लो उपाऐं भारों,
कर हैं हम तुम ऐसों काम जो प्यारों,
लगे सब को प्यारों,
ओ भावी जी भींगत हैं आँगन मारों,
तुम ही कहत मैं, दिल को दुलारों,
तुम मानो बात हमारों,
तुम ही हो भावी मैरी प्यारी ,
मैं देवर तुम्हारों,
सुन लो बात हमारों,
आज कहना हैं तुमसे कछु प्यारों,
तुम निकालो समय हमारों,
कर हैं अपुन जिसमें बात अँपारों,
हम तुम मिल कर हैं बदलारों,
तुम छूअँत थी हमऐं ,अब हम छूयेंगे तुम्हारें,
शिक्षित बनके लगों जो रिश्तों हमें प्यारों,
ओ भावी सुन लो बात हमारों,
कहत हैं देवर तुम्हारों,
भींगत हैं आँगन मारों,
सुन लो बात हमारों,||
लेखक—Jayvind singh nagariya ji