भिखारी
मैं ऑफिस में बैठकर काम कर रहा था । बातों बातों में मेरे एक सहकर्मी मित्र अतुल जी ने बताया कि मुझे कविता और कहानी लिखने के अलावा समाज में कुछ अच्छाई करने का भी प्रयास करना चाहिए । समाज में कुछ परिवर्तन करने का प्रयास करना चाहिए ।
मैंने कहा , परिवर्तन तो सृष्टि का नियम है । वो तो होते हीं रहता है । यदि स्वयं को हीं बदल लूँ , यही काफी है ।
अतुलजी ने कहा ,लिख और पढ़ तो सभी लेते हैं , लेकिन परिवर्तन के लिए प्रयास तो बहुत कम लोग हीं कर पाते है ।
मैंने कहा , भाई बार बार परिवर्तन की बात कर अपने अहंकार के तुष्टि का प्रयास क्यों कर रहे हैं आप ?
अतुल जी ने कहा , किसी की सहायता करना , किसी की दिशा को सुधारने की बात कर रहा हूँ।मै इसी परिवर्तन की बात कर रहा हूँ । इसमें अहंकार के तुष्टिकरण की बात कहाँ से आ गई ?
मैंने कहा , भाई आप अपने तरीके से समाज में परिवर्तन लाइए , मैं अपने तरीके से कुछ लिखकर लाने की कोशिश कर रहा हूँ । आखिर सारे आदमी एक से तो नहीं होते ।
कुछ क्षण रुक कर मैंने पूछा , अच्छा आप मुझे समझाइए आप किस तरह के कार्य की बात कर रहे हैं ?
अतुल जी ने बताया , आज सुबह वो कार से आ रहे थे । कार में पेट्रोल कम था । पास में एक पेट्रोल पंप था , तेल कम था , इसलिए पेट्रोल लेने के लिए पेट्रोल पम्प पर रुक गए । लम्बी लाइन लगी थी । तभी 10-12 साल का लड़का एक कपड़े से कार का शीशा साफ करने लगा । अतुल जी ने बताया कि कोरोना समय होने के कारण वो बच्चे पर झुँझला उठे और उसे भगाने लगे ।
मैंने भी कहा , आपने बिल्कुल ठीक किया । कोरोना के समय में इनसे तो दूर रहना हीं चाहिए ।
अतुल जी ने कहा , भाई सुनिए तो । उन्होंने कहना जारी रखा , वो भिखारी लड़का सहमकर ठिठक गया , फिर दुसरे की गाड़ी साफ़ करने लगा । सहकर्मी बोले लगभग सारे कारवाले उसे दुत्कार रहे थे ।
इसी बीच उनकी गाड़ी का नंबर आया । उन्होंने गाड़ी में तेल भरवाया और कार लेके आगे चलने लगे । तभी उन्होंने देखा वो 10-12 साल का लड़का एक 7-8 साल की बच्ची के साथ निराश होकर सड़क के किनारे बैठा हुआ था ।
अतुल जी ने कहा , उनसे दोनों की निराशा देखी नहीं गई । वो दोनों की पास जाने लगे । वो लड़का डांट खाने के भय से दूर जाने लगा । किसी तरह सहकर्मी उनके पास पहुंचे और उससे पूछा तो ज्ञात हुआ , उसके माता और पिता दोनों मानसिक रूप से विकलांग हैं । वो दोनों भाई बहन हीं मिलकर सबका गुजारा चला रहे थे ।
अतुल जी ने आगे कहा , उन्होंने दोनों को 50-50 रूपये दिए और आगे बढ़ गए । उन्होंने कहा , क्या सरकार की जिम्मेदारी नहीं बनती ऐसों के लिए कुछ करने की ? गर सरकार कुछ नहीं करती , तो क्या हमारी जिम्मेदारी नहीं बनती कि कुछ ऐसा करें , जिससे इस जैसों का कुछ भला हो ?
मैं निरुत्तर था ।
अतुल जी ने ठंडी सांसें लेते हुए कहा , सारे भिखारी एक से तो नहीं होते ।
अजय अमिताभ सुमन