भिखारी
एक भिखारी जोड़ से, लगा रहा है टेर।
बना निकम्मा आलसी, या किस्मत का फेर।। १
गली-गली में घूमता,फैलाता है हाथ।
दर-दर ठोकर खा रहा, दो बच्चे भी साथ।। २
फटी-पुरानी झोलियाँ, काँधे ऊपर टाँग।
आते-जाते लोग से, भीख रहा है माँग।। ३
सर्दी-गर्मी धूप में, चलता नंगे पाँव।
चैन कभी पाता नहीं, मिले न सुख की छाँव।। ४
हाथ पेट पर फेरता,लगी हुई है भूख।
हड्डी पसली एक है, होठ गए हैं सूख।। ५
दीन-हीन उसकी दशा,है बेबस लाचार।
पाँवों में छाले पड़े,दिखता है बीमार।। ६
हाथों में डंडा लिए,चलता धीमी चाल।
फेके टुकड़े पर नजर,किया भूख बेहाल।। ७
बेबस आँखों में नमी,मुख से निकले आह।
मुट्ठी भर दाना मिले, बस इतनी-सी चाह।। ८
कभी जोड़ता हाथ वह, कभी पकड़ता पैर।
लब पर है लाखों दुआ,माँगे सबकी खैर।। ९
है केवल ढाँचा बचा, चिथड़े पड़े शरीर।
हाय विधाता ने दिया,क्यों फूटी तकदीर ।। १०
-लक्ष्मी सिंह