Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
22 Aug 2024 · 9 min read

भिखारी का कटोरा(कहानी)

एक बार एक गाँव में बाढ़ आयी थी, जिससे गाँव में रहने वालों को बहुत नुकसान हुआ था। उसी गाँव में एक भिखारी रहता था, उसकी भी टूटी-फूटी झोपड़ी बाढ़ में बह गयी थी, जिसमें उसका भीख माँगने का कटोरा भी बह गया। अतः अब उसके पास भीख माँगने के लिए बर्तन भी नहीं बचा था, मगर उसे भीख बहुत जोरों से लग रही थी, इसलिए वह सोचने लगा कि, “अब वह भीख किस बर्तन में लेगा?”
इसी सोच में वह भीख माँगने के लिए इधर उधर कोई बर्तन जैसे कटोरा या और कुछ तलाशने लगा जिससे वह उसमें अपने लिए भीख ले सके। मगर उसे कहीं भी कुछ नहीं दिख रहा था। तभी उसे लगा कि गाँव वालों का सामान बाढ़ के साथ नदी में बह गया होगा, इसलिए वहाँ पर कोई बर्तन मिलने की ज्यादा संभावना है। यही सोचकर वह उसी नदी के पास गया जिससे गाँव में बाढ़ आई थी। किंतु आशा के विपरीत उसे नदी में या उसके आसपास कुछ भी दिखाई नहीं दिया सिबाय कूड़ा करकट और मरे हुए जानवरों को। यह देखकर वह निराश हो गया और रोने लगा, “हे भगवान मैं तो इंसानी जीवन का सबसे निकृष्ट जीवन जी रहा हूँ क्या तू उसे भी मुझसे छीनना चाहता है? सभी के पास घर है, परिवार है खाने पीने रहने सोने और पहनने के लिए सब कुछ मेरे पास कुछ भी नहीं फिर भी तू मेरे ऊपर जुर्म ढा रहा है, भीख मांगने का एक कटोरा था तूने वह भी मुझसे छीन लिया, मैं तुझसे कुछ मांगता भी तो नहीं जो कुछ मिलता था उसी को खा पीकर सन्तुष्ट रहता था, फिर भी तूने मेरे साथ ऐसा किया?”
इस तरह भिखारी नदी के किनारे बैठकर रोने लगा और अपने भाग्य को कोसते हुए भगवान को बुरा भला कहने लगा। तभी उसने देखा वहाँ पर एक दलदल था जिसमें एक सूहर का बच्चा फसा हुआ था और थोड़ा बहुत चीख रहा था क्योंकि वह उस दलदल में पिछले दो दिन से फसा हुआ था इसलिए चीख-चीख कर वह परेशान हो गया था। सूहर के बच्चे को दलदल में फंसा देखकर उसे लगा कि, “मेरी और सूहर के इस बच्चे की स्थिति एक जैसी है, मैं भी इसी की भाँति जीवन के गंदे दलदल में फंसा हुआ हूँ, जैसे चीख-चीख कर इसकी आवाज खत्म हो गयी है वैसे ही मेरी भी पुकार खत्म हो गयी है, जैसे यह भी लोगों के घर से निकला सड़ा-गला खाता है वैसे ही मैं भी लोगों के फेंके हुए खाने को खाकर जीवन जीता हूँ!”
सूहर के बच्चे की इस स्थिति और जीवन को देखकर उसका दिल भर आया और उसके मन में भगवान के प्रति एक विद्रोह की भावना जाग उठी जिस कारण वह खड़ा हुआ और से चीखते हुए बोला- “तूने इसे अपमान भरा जीवन दिया और तड़फ तड़फ कर मारने का इतंजाम कर दिया, पर मैं ऐसा नहीं होने दूँगा, मैं तेरी इच्छा के विपरीत इसे इस दलदल से मुक्त करूँगा और इसे मरने नहीं दूंगा!” यह कहकर वह जल्दी से उस दलदल में कूद गया और सूहर क उस बच्चे को निकालने लगा। कुछ देर प्रयास करने के बाद वह सफल हुआ और उसने सूहर के बच्चे को दलदल से मुक्त करा दिया। यह देखकर वह बहुत खुश हुआ और आसमान की तरफ देखते हुए व्यंगात्मक हँसी ऐसे हँसने लगा जैसे उसने भगवान को हरा दिया हो। तभी उसका पैर दलदल में पड़ी किसी वस्तु पर पड़ा, उसे लगा कि यह तो बर्तन जैसा है इसलिए उसने उसे उठा लिया। उसने देखा कि वह एक बड़ा कटोरा था जो कीचड़ और मिट्टी से पूरी तरह सना हुआ था। उसे पाकर उसे खुशी हुई कि अब उसे भीख मांगने के लिए कटोरा मिल गया। यह कटोरा पाने का श्रेय उसने उस सूहर के बच्चे को दिया और उसकी तरफ देखते हुए वह बोला- “जो भगवान ना कर सका वह तूने कर दिया, इसलिए आज से मेरा भगवान तू है।”
इस तरह भिखारी दलदल से बाहर निकला और जमीन पर बैठे सूहर के बच्चे को गले लगाकर बहुत प्यार किया, अपना दुखड़ा भी रोया और बार-बार धन्यवाद भी दिया। इसी के साथ ही भिखारी ने उस सूहर के बच्चे का नाम भगवान रख दिया और उसके गले में एक रस्सी डालकर उसे अच्छे से नहला धुलाकर अपने साथ गाँव लेकर चल दिया। क्योंकि उसे लगा जैसे इसने मुझे कटोरा तक पहुंचाया है वैसे ही यह मुझे भीख भी दिला देगा।
इस तरह वह सूहर के बच्चे के साथ गाँव-गाँव भीख माँगने लगा मगर उसे कहीं से भी कुछ नहीं मिला क्योंकि गाँव में बाढ़ के प्रकोप से चारो तरफ त्राहि मची हुई थी और किसी के पास उसे देने के लिए कुछ भी बचा नहीं था। इस तरह भीख में कुछ ना पाकर वह भिखारी अपना मैला-कुचैला कटोरा लेकर एक पेड़ के नीचे जाकर बैठ गया और वहीं पर अपना सूहर भगवान को बांध लिया और अपने जीवन की उससे बातें करने लगा। तभी वहाँ से एक कबाड़ी निकला और उसने देखा कि एक भिखारी पेड़ के नीचे बैठा हुआ है। इसलिए वह भी अपना खाली थैला लेकर वहीं उसके पास बैठ गया। उसे देखकर भिखारी बोला- “तू कौन है?”
“मैं कबाड़ी हूँ..”
“कबाड़ी हो, तुमको यह नहीं पता कि गाँव में बाढ़ आई है गांववालों का सबकुछ बह गया है वो तुझको कबाड़ कहाँ से देंगे?”
भिखारी की बात सुन कबाड़ी उसके चेहरे को देखने लगा और बोला- “तुम कौन हो?”
“मैं भिखारी हूँ..”
“क्या तुमको नहीं पता कि गाँव में बाढ़ आई है गांववालों के पास कुछ शेष नहीं बचा तो वो तुझे और तेरे सूहर को खाने के लिए क्या दे देंगे?”
काबड़ी की बात सुन भिखारी चिढ़ गया और बोला- “भीख मांगना तो मेरा काम है मैं वही कर रहा हूँ..”
“भीख मांगना किसी का काम नहीं होता, तुम मूर्ख हो इसलिए भीख मांग रहे हो, समझे..”
यह सुनकर तो भिखारी और भी गुस्सा हो गया और बोला- “लगता है तुमको शास्त्रों का ज्ञान नहीं है, तुम अनपढ़ गंवार हो!”
“अगर तुम इतना ही होशियार और शास्त्र मर्मज्ञ हो तो भीख क्यों मांग रहे हो वो भी इस निकृष्ट जानवर सूहर को साथ लेकर?”
“ये निकृष्ट जानवर नहीं, इसका नाम भगवान है..!”
भिखारी की बात सुनकर कबाड़ी हँसने लगा और बोला- “तूने इसका नाम भगवान रखा है?”
“नाम रखा नहीं बल्कि यह भगवान है ही, जैसे दुनिया में सबकुछ होते हुए भी हम उसे तभी पहचानते हैं तब हमें ज्ञान होता है , इसलिए अब मुझे ज्ञान हुआ कि यह सूहर का बच्चा भगवान है!”
भिखारी की बात पर कबाड़ी थोड़ा हँसा और बोला- “अच्छा तो यह भगवान है तो कुछ इसके चमत्कारों के बारे में बताओ?”
“हाँ बताता हूँ..” भिखारी ने कहा
“हाँ बताओ तो बताओ, जरा मैं भी तो सुनी इस भगवान के चमत्कार के बारे में!”
यह सुन भिखारी अपनी दास्तान सुनाते हुए बोला- “बाढ़ में मेरा सबकुछ बर्बाद हो गया था मेरे पास भीख माँगने के लिए एक कटोरा तक नहीं था, मगर जब मैं नदी के पास गया तो मैंने देखा यह एक दलदल में फंसा हुआ था जब मैंने इसे दलदल से निकाला तो मुझे वहीं पर यह कटोरा मिला!” यह बताते हुए भिखारी ने वह कटोरा उस कबाड़ी के सामने रख दिया
कबाड़ी कीचड़ से काले पड़ चुके उस कटोरे और उस भिखारी की बात सुनकर जोर-जोर से हँसने लगा और बोला- “तो इसी कारण यह सूहर का बच्चा तेरा भगवान है?”
“हाँ इसी कारण क्योंकि तेरे भगवान ने तो मुझसे मेरे जीवन जीने का अधिकार छीन लिया जिससे मैं भूखा तड़फ-तड़फ कर मर जाऊँ, मगर इसने मुझे पुनः कटोरा दिलाया जिससे में जीने के लिए पुनः कुछ मांग कर खा सकूँ, इसलिए यह मेरा भगवान है!”
यह सुनकर कबाड़ी को फिर से हँसी आयी और बोला- “देख आज मुझे कबाड़ में कुछ नहीं मिला है अगर तू कहे तो मैं तुझे इसी कटोरे के बदले कुछ रुपये दे देता हूँ, उनसे तू और अपने इस भगवान को कुछ खिला लेना और मैं भी खाली हाथ नहीं लौटूंगा!”
कबाड़ी का सुझाव सुन भिखारी बोला- “मगर तू इस गंदे काले पड़ चुके कटोरे का क्या करेगा इसे तो कोई खरीदेगा भी नहीं!”
“हाँ मुझे पता है यह मेरे लिए बेकार ही है पा खाली हाथ घर लौटना अपशकुन है और मेरी इतनी औकात नहीं कि मैं तुझे भीख डाल दूँ…”
कबाड़ी की बात सुन भिखारी बोला- “मैं समझा नहीं तू क्या कह रहा है?”
“मैं कह रहा हूँ कि तुझे भीख डालने के बदले मैं तेरे इस कटोरे को खरीद लेता हूँ जिससे तेरे पास खाने के लिए रुपये भी आ जाएंगे और मेरा काम से खाली हाथ लौटने का अपशकुन भी दूर हो जाएगा!”
यह सुनकर भिखारी को लगा कि यह मेरी कोई सहायता नहीं कर रहा बल्कि अपना अपशकुन दूर करने के लिए ऐसा कर रहा है। इसलिए वह सोचने लगा कि, “यह अच्छा मौका है इससे इस कटोरे के ज्यादा दाम माँग लेता हूँ!” यही सोचकर उसने उस कटोरे के ज्यादा दाम बताए और बोला- “मैं इस कटोरे को इसी दाम पर ही बेचूंगा क्योंकि यह कटोरा मुझे मेरे भगवान से मिला है इसलिए यह मेरे लिए अनमोल है परंतु तुम्हारा अपशकुन ना हो इसलिए मैं तूम पर दया कर रहा हूँ और इस कटोरे को बेच रहा हूँ!”
कटोरे के दाम सुनकर कबाड़ी सोच में पड़ गया कि, “भिखारी बहुत चालाक बन रहा है और जानबूझकर इस खराब कटोरे के दाम ज्यादा लगा रहा है!” इसलिए काबड़ी ने भिखारी से कहा- “तुम जानबूझकर इस खराब कटोरे के ज्यादा दाम लगा रहे हो, जबकि तुम भी जानते हो इसे कोई नहीं खरीदेगा?”
“कोई भी ना खरीदे मुझे इससे क्या मैं तो तुम्हारी सहायता कर रहा हूँ, मगर तुम यह भी ना भूलो कि यह कोई आम कटोरा नहीं बल्कि मेरे भगवान का दिया मेरे लिए उपहार है इसलिए यह मेरे लिए अनमोल है!”
भिखारी की बात सुन कबाड़ी सोचने लगा, “बताओ कितना मौका परस्त भिखारी है, वैसे कुछ देर पहके कह रहा था कि भीख मांगना ही मेरा काम है और अब देखो व्यापारी बन गया है!” इसलिए वह उस कटोरे के दाम कम करते हुए बोला- “तुम्हारे लिए यह कुछ भी हो पर मेरे लिए तो यह कबाड़ का ही सामान है अगर तुम इसे इस दाम में देना चाहते हो तो दे दो बरना मैं ऐसे ही अपने घर चला जाता हूँ!” और इतना कहकर वह काबड़ी खड़ा होकर वहाँ से चल दिया। तभी भिखारी को लगा कि, “यह तो चल दिया..!” इसलिए वह उसे रोकते हुए बोला- “ठीक है चलो लेलो तुम भी क्या याद रखोगे…!”
इस तरह भिखारी ने उस कटोरे को पहले अपने भगवान के पैरों में रखा उसे चटाया और काबड़ी के बताए दाम पर उसे बेच दिया। काबड़ी ने पहले टी उस भिखारी को रुपये दिए और फिर अपने थैले से खाना निकालकर उस कटोरे में रखा और उस सूहर के बच्चे के सामने परोस दिया और बोला- “आज से तुम मेरे भी भगवान हो, इसलिए तुम मेरा प्रथम भोग स्वीकार करो!”
काबड़ी ने खाने से भरा कटोरा जैसे ही सूहर के बच्चे के सामने रखा उसने उसे तुरंत ही खा लिया क्योंकि वह दो तीन दिन से भूखा था, जिससे वह मरियल स्थिति में वहाँ पर बैठा था। सूहर कि सामने रखे भोजन को देखकर भिखारी मन ही मन सोचने लगा, “इससे अच्छा होता यह मूर्ख कबाड़ी खाना मुझे ही दे देता…” पर उस भिखारी ने कुछ नहीं कहा और काबड़ी को मुस्कुराते हुए ऐसे देखने लगा जैसे वह उसके इस काम से कितना खुश हुआ हो।
जब सूहर के बच्चे ने खाना खा लिया तब उस कबाड़ी ने वह कटोरा लिया और अपने खाली पड़े थैले में रख लिया और बोला- “ठीक है तो भाई मैं चलता हूँ अब तुम भी बाजार जाकर कुछ खा पी लो..!”
यह सुनकर भिखारी गर्व से बोला- “हाँ ठीक है ठीक है, अब तुम भी जाओ और देखो मेरा यह एहसान कभी मत भूलना..”
इस पर कबाड़ी हँसा और बोला- “नहीं यह एहसान और मूर्खता मैं कभी नहीं भूलूंगा और ना ही इस भगवान को..”
भिखारी को लगा कि वह स्वयं को मूर्ख कह रहा है इसलिए हँसा और बोला- “ठीक है अब जाओ..”
इतना कहकर भिखारी बाजार चला गया और काबड़ी भी वहाँ से चला गया। बाजार जाकर भिखारी ने पहले तो भर पेट खाना खाया और सूहर के बच्चे को वहीं छोड़ दिया। इसके बाद भिखारी ने सोचा, “चलो थोड़ी बहुत भीख भी मांग लेता हूँ जिससे रात का और कल का काम चल जाएगा..”
इस तरह भिखारी बाजार में भीख मांगने लगा, भीख मांगते-मांगते उसने देखा कि सुनार की दुकान पर वही कबाड़ी बैठा हुआ था। जिसे देखकर वह चौंक गया, मगर उसे लगा हो सकता है कुछ कबाड़ खरीद रहा होगा। किन्तु तभी उसने देखा कि काबड़ी ने अपने थैले से वही कटोरा निकाला और सुनार की मेज पर रख दिया। जिसे देख भिखारी आश्चर्यचकित रह गया कि, “यह उस खराब कीचड़ से काले पड़ चुके कटोरे को सुनार की मेज पर क्यों रख रहा है?”
तभी उसने देखा कि सुनार उस कटोरे को अंदर लेकर गया और अंदर से बहुत सारा रुपया लाकर उस काबड़ी के सामने रख दिया, जिनको उस कबाड़ी ने अपने खाली थैले में रखा और दुकान से बाहर निकल कर चल दिया।
यह देखकर भिखारी अवाक रह गया और सामने झूठी पत्तल चाट रहे सूहर के उसी बच्चे को जिसका नाम उसने भगवान रखा था टकटकी नजर लगाकर उसे देखने लगा…..

लेखक:-
प्रशांत सोलंकी
नई दिल्ली
©®

Language: Hindi
2 Likes · 191 Views
Books from सोलंकी प्रशांत (An Explorer Of Life)
View all

You may also like these posts

महसूस किए जाते हैं एहसास जताए नहीं जाते.
महसूस किए जाते हैं एहसास जताए नहीं जाते.
शेखर सिंह
25 , *दशहरा*
25 , *दशहरा*
Dr .Shweta sood 'Madhu'
रहो कृष्ण की ओट
रहो कृष्ण की ओट
Satish Srijan
गुज़रे वक़्त ने छीन लिया था सब कुछ,
गुज़रे वक़्त ने छीन लिया था सब कुछ,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
जिंदगी में सफ़ल होने से ज्यादा महत्वपूर्ण है कि जिंदगी टेढ़े
जिंदगी में सफ़ल होने से ज्यादा महत्वपूर्ण है कि जिंदगी टेढ़े
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
निःशब्द के भी अन्तःमुखर शब्द होते हैं।
निःशब्द के भी अन्तःमुखर शब्द होते हैं।
Shyam Sundar Subramanian
*जिनको चॉंदी का मिला, चम्मच श्रेष्ठ महान (कुंडलिया)*
*जिनको चॉंदी का मिला, चम्मच श्रेष्ठ महान (कुंडलिया)*
Ravi Prakash
"दिल "
Dr. Kishan tandon kranti
अटल सत्य मौत ही है (सत्य की खोज)
अटल सत्य मौत ही है (सत्य की खोज)
VINOD CHAUHAN
बहकते हैं
बहकते हैं
हिमांशु Kulshrestha
दीन-दयाल राम घर आये, सुर,नर-नारी परम सुख पाये।
दीन-दयाल राम घर आये, सुर,नर-नारी परम सुख पाये।
Anil Mishra Prahari
सुन लो प्रिय अब किसी से प्यार न होगा।/लवकुश यादव
सुन लो प्रिय अब किसी से प्यार न होगा।/लवकुश यादव "अजल"
लवकुश यादव "अज़ल"
बुंदेली लघुकथा - कछु तुम समजे, कछु हम
बुंदेली लघुकथा - कछु तुम समजे, कछु हम
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
जीवन का आइना
जीवन का आइना
Sudhir srivastava
इच्छाएं.......
इच्छाएं.......
पूर्वार्थ
3943.💐 *पूर्णिका* 💐
3943.💐 *पूर्णिका* 💐
Dr.Khedu Bharti
रोटी
रोटी
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
Think Positive
Think Positive
Sanjay ' शून्य'
तुम
तुम
Sangeeta Beniwal
कितने अकेले हो गए हैं हम साथ रह कर
कितने अकेले हो गए हैं हम साथ रह कर
Saumyakashi
आगे पीछे का नहीं अगल बगल का
आगे पीछे का नहीं अगल बगल का
Paras Nath Jha
..
..
*प्रणय*
चलते जाना
चलते जाना
अनिल कुमार निश्छल
युद्ध घोष
युद्ध घोष
डॉ प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, प्रेम
* बातें व्यर्थ की *
* बातें व्यर्थ की *
surenderpal vaidya
प्रेमनगर
प्रेमनगर
Rambali Mishra
काश तेरी निगाह में
काश तेरी निगाह में
Lekh Raj Chauhan
एकवेणी जपाकरणपुरा नग्ना खरास्थिता।
एकवेणी जपाकरणपुरा नग्ना खरास्थिता।
Harminder Kaur
समय का सिक्का - हेड और टेल की कहानी है
समय का सिक्का - हेड और टेल की कहानी है
Atul "Krishn"
जवान और किसान
जवान और किसान
ओमप्रकाश भारती *ओम्*
Loading...